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________________ १६१ नैमि राजुल बारहमासा सखी री आयो अव मास असाढ़ो, कालाहणि ऊंची काढो । वालंम हित बन्धन वाढ़ो, वैरागै मन कियौ गाढो हो लाल ।रा०१२ । सखी री मिलि अरज करत है आली, कहा वात करत है काली । नवली कोइ कुमर निहाली, तुम परणावा ततकाली हो लाल । रा०१३ । सखी री अव राजुल बोली एमौ, इण भव मुझ प्रीतम नेमो । दूजी परणण अब नियमों, न तजु नवभव को प्रेमौ हो लाल ॥१४॥ सखी री योगी नहीं नेम सौ कोई, राजल सम नारि न होइ । संसारी दुख सब खोई, सिवपुरी सुख विलसे दोइ हो लाल रा० १५।। सखी री मन धारे बारेमासा, ___ आणौ वैराग उलासा । गुरू विजयहरष जस वासा, वधतधर्मशील विलासा हो लाल ।।१।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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