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________________ १८६ धर्मवद्धन ग्रन्थावली सबल संग्रामै भिडंता भूप भूपाल । अति राता ताता वहै गोला हथनाल ।। खडकै तलवारा खलके रुधिरा खाल । __ तिहां पिण जिण नामै न हुवै वाको वाल ॥८॥ दरीयो जल भरीयो ऊंडो जेह अपार । उछलता तरंगा सुणि जलधर गरजार ।। वाहण विचि लिवि पिवि बूडण नै हुवो त्यार। ते पिण जिण नामै पहुचे पेले वार ।।६।। गड गुबड फोडी हीया होडी तेह । खैन खाजनै खासी हरस सहित जन जेह ।। सोलह कोढादिक उपज्या रोग अछेह । प्रभु पद फरसत ही दिनकर दुति हुइ देह ॥१०॥ जन सांकल जडीयौ पडीयो बन्दीखाण । भय आठ भाजे न रहे पलक प्रमाण !! सिर संती जिणेसर सेवत ही सुख खाण | इणभव लहै लीला परभव पद निरवाण ।।११।। ब्लग संवत्त सतरै बरस वीस मास मिगसर जाण ए। चन्द्रापुरी थी संघ चाल्यौ, चढी जात्र प्रमाण ए।। गणि विजयहर्प पदारविडे, भ्रमर ओपम आण ए।। कहै 'धर्मवर्द्धन धर्मवद्धन, संघ कुशल कल्याण ए ||१२||
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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