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________________ ( १२ ) और पदों की भाषा पिंगल है। कविवर के कुछ पढो को उदाहरण-स्वरूप यहा दिया जाता है : १. राग तोड़ी तु करे गर्व सो सर्व वृथा री। स्थिर न रहे सुर नर विद्याधर ता पर तेरी कौन कथा री ॥१॥ कोरिक जोरि दाम किये इक ते, जाके पास वि दाम न था री । उठि चल्यो जब आप अचानक, परिय रही सब धरिय पथा री ।। २ ॥ सपद आपद दुहु सोकनि के, फिकरी होइ फद में फथा री। सुधर्मशील धरे सोउ सुखिया, मुखिया राचत मुक्ति मथारी ॥ ३ ॥ २. राग सामेरी मन मृग तु तन यन में मातौ । कलि करे चरे इच्छाचारी जाणे नहीं दिन जातो ।। १ ।। माया रूप महा मृग त्रिसना, तिण मे धावे तातो। आखर पूरी होत न इच्छा, तो भी नहीं पछतातो ॥२॥ कामणी कपट महा कुडि मंडी, खबरि करे फाल खातो। कहे धर्मसीह उलगीसि वाको, तेरी सफल कला तो ।। ३ ।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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