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________________ चोवोसी १५१ सुर नर सब मे अनग अजोतो, काम कठिन सो ते वश कीतो । जल सब अनल बुझाइ वदीतो, पानी सोइ वडवानल पीतो ॥ प्रभु० ॥२॥ विन प्रभु दरसण काल बितीतो, भवभय भमीयो बहु भयभीतो । गुणवत तेरी सेव ग्रहीतो, श्री धर्मशील सुशील लही तो प्रभु०॥३॥ ३ श्री सभव स्तवन राग-सोरठ सेवा बाहिरो कइयै कोइ सेवक (ए देशी ) ॥ मभवनाथ जी सब कु सुखदाइ, किम ए विरुद कहावै । इहा आछी दीसैं अपणांयत, सेवै ते सुख पावै॥ सभव ॥१॥ खिजमत करि कर जोडि खिजमत, आप नरीमैं औजाह । मोल दिये पिण मसकित माफक, मोटारी नहीं मौजाह ।।२।।स ।। भगति करै त्या राखै भेला, कठे न फेरै कबही। श्री धर्मशील कहै सुणजो साचो, स्वारथ राचै सबही ।।स।३।। ४ श्री अभिनन्दन स्तवन राग-वसत धन धन दिनकर उग्यो उछाह, अभिनन्दन जिन वदन उमाह ॥२॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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