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________________ १४८ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली - आगला भूप श्री अजीतसिंह आगला, डागला दौड़ज्यू दिली कति दूर । भागलै भुजा बल खला करि खागले, सागलैं कीध जस सूर हर सूर ।।३।। खीजीया यवन ल्यै जीजीया खूटिवे, खेचला वीजीया रैत खाखी । प्राण जोधाण रै पाजीया पी जीया, रेख दूर्गदास राठौड़ राखी ||४|| गीत श्री शिवाजी रो श्री सूरत मध्य कह्यौ स० १७३३ आसाढ माहे । सकति काइ साधना, किना निज भुज सकति, वड़ा गढ़ धूणिया वीर वाकै । अवर उमराउ कुण आइ साम्ही अडे, सिवारी धाक पातिसाह साके ।। १ ।। खसर करतां तिके असर सहु टुंदिया, जीविया तिके त्रिणौ लेहि जीहै । शब्द आवाज सिवराज री साभले, विली जिम दिल्ली रो धणी वीहे ।। सहर देखे दिली मिले पतिसाहस, ___ खलक देखत सिवौ नाम खारै। आवियो वले कुसले दले आपरे, हाथ घसि रह्यौ हजरत्ति हारै ॥३॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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