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________________ १४० धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली ग्रहणी रोग बताये पंच, तिण विधि सुदेणा तिण संच । पंच उदर हिरदै प्रकार, इहि विधि द्वादश डंभ विचार ।।१४।। . हिरदै रोग स्वास अरू खास, डंभ क्रिया तिहा पंच प्रकास | हुदै लीक अरू वर्तुल च्यार, दंभ अस्थि के मध्य विचार ।।१।। रूधिर वहै नासा मुखि जब, सीस डंभ वर्तुल इक तवै । डंभ कह्या सन्निपाते जोड, सीस रोग सीतागै सोइ ॥१६।। परिहा मृगी धनुप वात जव जाणिय, दीजै खट खट डंभ क्रिया पिहिचाणियें । दो लवणे दोइ पाय एक पुनि तालवे, परिहा गुदड़ी उपरि एक इणै विध चालवें ॥११॥ कटी वात जव जाइ न ओपध गोलीयें, कटि नीचे दोइ डंभ वणावौ चूलीय । अंड वृद्धि जब होइ दंभ इक दीजिये, परिहा, पाय अंगुली पास समझि विधि लीजिये ॥१८॥ वामी दिसि जो होइ कुरंड विथा घणे, - दक्षिण दिसि द्यौ दभ तुरत पीड़ा हर्ण । 'पद अंगुल दश जाण तहा दश दंभ है, परिहा, पंच पच दोइ जानु सधि विचि थभ है ।।१६।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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