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________________ १३४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली समस्या-काकै के दोठे कुटब ही दीठी। मोहनभोग जलेबीय लड् अ, घेवर तामै कही कहा मीठौ । वाद भयौ धर्मसी कहै नागर, न्याउ कु जंगल जट्ट प्रतीठौ । सौ कहे वूरै के पूर भये सब, ताकौ भाइ गुड लाल मजीठौ । सो गुट दीठौ है में अति मीठो तो, काके के ढीठे कुटम्ब ही दीठौ ॥ १ ॥ समस्या-युंकुच के मुख स्याम कीये है। तीय को रूप अनूप विलोकत, लोकनि के लख मोहि लिये हैं। कोऊ कहै कुच कंचन कुंभ धु, श्रीफल मंगल रुप ही ए है। लगे जिनु दृष्टि विचारि विरंचहि कजल के दुइ बिंदु दीयें है। बात को मर्म कहै कवि धर्म जु, यु कुच के मुख स्याम किये हैं ॥ १ ॥ समस्या-छानोरे छानो रे छानो रे ,या । काम कलोल मे लोल भयो, पिऊ तीय करै ओहि ओहि रेया। नेकु हर हर मानि वुलाइ ल्यो, कोउ सुणे जिनु लोक पर्छया । सेज के उपर नुपर के सुर, वाल जग्यो लग्यो रोवन मैया । दै तेरे बाप कै थाप डरें जिनु, छानु रे छानु रे छानो रे' छैया ॥ १ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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