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________________ ११० धर्मवद्धन ग्रन्थावली - राजनीति-छप्पय कवित्त सकले गुणे सकज्ज, पाच दस परिखा पुहती। आण्यो म्हे इतवार, मन शुद्ध थाप्यो मुहती। सहु आगै कहै सांन, बान इम अधिक वधारे । तिणरौ वाधैं तोल, सही सहु काम सुवारे। प्रभु काज साधि पोते पर्छ, काज प्रजा रा पिण करें। परसिद्ध भली परधानरी, राज काज सगला सरें ।। १ ।। पुखतौ गुणे प्रधान, कदे नहीं मन में कावल । पिण काइ पर कृति, साम नहीं मन में सावल। कहै म्हेइज सहु करा, मंत्रि रो कह्यौ न माना। म्हा थी बीजी ठाम, छेतरावी मत छाता। सहु नै इकात इम सीखवें, अदेखाइ आण इसी। -अधिकार तणो जिंहा नहीं अमल, कही तिणमें वरकत किसी ॥ १ ॥ । वरसी दान त्रणसे कोडि अठ्यासी कोडि, असी लाख उपर वलि जोडि । इतरा सौनइया नौ मान. दे सहु अरिहत वरसीदान ॥१॥ छप्पय छत्तीस विधान रो। ' गुरु गुरु' दिनमणि हंस, मेघ मंदर" मुगता गण । मदि दुति गति अति सोह, वाणि मणि गुण जाके तण ।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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