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________________ १०४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पुण्य पाप जल कथन गोत ससरी। समै साली चित्रसाली ढाली पौडे के सुहाली सेज, खंटाली कूटी में एक उखराली खाट । दिखाली विना ही भाली सुखाली दुखाली दसा, नेह पाप पुण्य वाली विचाली निराट ॥शा सोना थाली माहे के आरोगै लाली दाली, सुखी वीया के हथाली, जिमैं पीय बृक । एकां लील लाली लाली पाली, धंधाली जंजाली एक, सड़ाली अढालीवार कमाइ सलूक ॥२॥ एका उन बाली छाली झाली न दीखें एकां, धुंभाली क्रमाली हेकां दूसैं काली थाट । सदारा सुगाली एक दुकाली किताक दीसै, वंसाली कमाइ चाली वाली जायें वाट ॥३॥ सम्भाली ल्यै वडा सोह, सुचाली कलत्त सुत्त, स्या करै कलाली नाली अनाली कपूत । वाणी के रसाली वर्दै रिसाली एकां वात, - कली कालि उजवालि आपरी करतूत ।।४।। दाहाली बाढाली बंधै रंढाली करतां दौड़, मान नहीं मच्छराली, मझाली मरम्म । उद्दाली उलाली जन्नि, ताली दियं जायै आउ. धारी हितवाली बात, संभाली धरम्म ॥५॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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