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________________ औपदेशिक पद ७ - - - परमारथ पथ नाहि पिछान्यो, 'स्वार्थ अपनो मानी सगीनो। सुगरु कहे धर्मसीख न धारी, निष्फल गयो नर जन्म नगीनो । क०।३। ( १२ ) राग-तोडी तुकरे गर्व सो सर्व व्यथारी। स्थिर न रहे सुर-नर विद्याधर, । ता पर तेरी कौन कथारी । तु०।१। कोरिक जोरि दाम किये इक ते, जाके पास विदाम न थारी । उठि चल्यो जब आप अचानक, परिय रही सब धरिय पथारी । तु०।२ संपद आपद दुहु सोकनि के, फिकरी होइ फंद मे फथारी। सुधर्म शील धरें सोउ मुखिया, मुखिया राचत मुक्ति मथारी । तु० । १३ । ( १३ ) राग-मारू वारू वारू हो करणी वारू हो । पामै सुख दुख प्राणीयो, सहु करणी सारू हो । क० । १ ।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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