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________________ - औपदेशिक पद ( ४ ) राग वेलाउल, अलहीयउ मूढ मन करत है ममता केती। जासुतु अपणी करि जाणत, साइ चल नहीं सेती । १ । मू० । माया करि करि मेलत माया, काणी करत कुवेती।। देखत देखत आए परदल, खाइ गए सब खेती । २ । मू०। पल पल पवन सुउलट पलटसी, रहत न थिर ज्यु रेती। धर तुरिद्धि घरमवरधन की, या सुखकारक जेती। ३ । मूछ। राग-रामकला मेरे मन मानी साहिब सेवा । मीठी और न कोइ मिठाइ, मीठा और न मेवा । मे० । १। आत(म) राम कली ज्यु उलसे, देखण दिनपति देवा । लगन हमारी यों सो लागी, रागी ज्यु गज रेवा । मे०।२। दूर न करिहुं पल भर दिल तें, थिरयु मुहरी थेवा । श्रीधर्मसी कहै पारस परसैं, लोह कनक करि लेवा । मे०३। राग-ललित करहुं वश सजन मन व काया। और मसकीन हो, वश की न होवत कहा, ए महा मत गज कवन नाया। १। क०।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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