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________________ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पग मेल्हीजें पाधरा, वधीयौ जो बहु वित्त । निज निंदा थी कीध नृप, चीतारी दृढ चित्त ।। १०॥ गुरू निदा करणी नहीं, माठी देखे मग्ग । सेलग गुरू मदवसि सूों, पथग चाप पग्ग ॥ ११ ॥ पाप किया जाये परा, जो पछतावै जोइ । गौसालौ स्वग गयौ, अत समै आलोय ।।१२।। दूजा दिपावै दीप ज्य , आप धरै अधार । पहुचाया शिवपाचरौ, खदक पोते ख्वार ॥१३॥ वल सगलौ बैठी रहै, देव हुवे दुख देण । बारवती नगरी बलै, निरखें केसव नैंण ॥१४॥ करि हितनै पीडा कर, ते तो पुण्य तरक्क । स्वर्ग गयो श्री वीररा, खीला काढि खरक ।। १५ ।। अवसर सभा अटकले, वायक वंद्या संवाद । दूहा दे जीतउ जती, वृद्धोवादी वाद ॥ १६ ॥ सबला री लै पूठि सिरि, निबला रौ रहै नीर। ' चमर शक साम्ही चढयौ, वासौ राखण वीर ॥ १७ ॥ कोप वस कारिज करै, वलि सोचें मतिवत । इन्द्र दौड़ि लीधौ उररौ, बज्र भगति भगवंत ।। १८ ॥ धरम्यानै पिण तजि धरै, सहु वखतावर सीर । इन्द्र चेडा नै अवगिणी, भयौ कोणिक री भीर ॥ १६ ॥ जतन करें जो देवता, कर मिटै नहि कर्म । वीर श्रवण मैं कील के, महापीड हुइ मर्म ॥ २० ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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