SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छप्पय बावनी गुरु गुरु दिन मणि हस, मेघ मेरहि मुगतागण । मति दुति गति अति सोभ, वाणि मणि गुण जाकै तण । सुरग पुवसर राज, गयणधर धुरि वारिधि थिति । वासव ग्रह अति चतुर, जगत सुर पारिख सेवित । प्रभात पंकति सहित, गरजित निरमल ग्रथित गुण । बहु जान तेज केली वरिप, धरि पवित्र धर्मसीह गुण ॥१॥ गुरु वर्णन रूप ३६ विधानीक कवित - ॐकार वलि अरक, उदयगिरि उपर ऊगो। अलग गयौं अन्धार, पार इणरै कुण पूगौ। चाहे सहुजग चक्खु, उदय पूरै सहु आसा । सुर नर माने सर्व प्रसिद्ध सगले परकासा । स सार सार परतिख समै, सिद्धि रिद्धि दायक सासता। धरि बान ध्यान धर्मसीह धुरै, अधिक इणरी आसता ॥१॥ नम्रता नम्या चढे गुण नेट, नम्या विण गुण ह निःफल । तरवर नमै तिकोज, साखि फल फूलें सफल । नमता वाथै नेह, नमै सो मोख नजीकी। नमै सुजाण नीति, नम्यां सहु बाता नीकी ।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy