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________________ २८ धर्मवद्धन ग्रन्थावली ___ सप्त व्यसन नरक रा भाई निरखि, साते कुविसन सोई। इण हुंती रहिन्यो अलग, करी रखे संग कोइ । कर रखे संग कोई, जोइ तिहा पहली जुऔ। मास खाण मद पान, संग दारी मत सूओ। आहेड़ी धन अदत्त, संग पर त्रीय साता रा। इण मे महा अधर्म, निरखि भाई नरका रा । न० ॥३६॥ तुकारा तुकारो काढ़े तुरत, मुंह मुलाजो मेट । कुल उत्तम-जन्म्या किसु, नीच कहीजे. नेट । नीच कहीजे नेट, पेट रो खोटो पापी । . तुरत ,वैण तोछड़ो, सैण नैं , कहै संतापी । चाप तणो नहीं बीज, वीज किणहिक वीज़ा रो। धिग तिण नर धर्मसीह, तुरत का? तुकारो । तु० १३७ थाका भूखा ही थका, धोरी-नर धर्मसीह ।. निज भुज भार निवाहिल्यै, लोपे नहीं शुद्ध लीह । लोपे नहीं शुद्ध लीह, दीह ल्यै ऊंचा दावें । सीह होइ. संचरै, जीह नहु भेद जणावें । आखर ते आपणा, जस्स खा हुइ जाका । धुरा भार ले धीग, थेट ताइ आणे थाका । था० ॥३८॥ सज्जनदर्शन देखो सैंणा रो दरस, मौटौ छै कोइ माल । दूर थकी पिण देखता, नयणा हुवै निहाल ।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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