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________________ * चौवीस तीर्थकर पुराण * - भगवान अजितनाथ स ब्रह्मनिष्ठः सममित्र शत्रु विद्या विनिर्वान्त कपाय दोषः। लब्धात्म लक्ष्मी रजितोऽजितात्मा जिनः श्रियं मे भगवान विधत्ताम् ॥ - समन्तभद्र वे आत्मस्वरूपमें लीन, शत्रु और मित्रोंको समान रूपसे देखने वाले, सम्यज्ञानसे कषाय रूपी शत्रुओंको हटाने वाले, आत्मीय विभूतिको प्राप्त हुए और अजित है आत्मा जिनकी ऐसे भगवान् अजित जिनेन्द्र मुझे कैवल्य लक्ष्मीसे युक्त करें। PARTIMenerOTOmamana । पूर्वभव परिचय इसी जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके दक्षिण किनारेपर एक त्स नामका देश है। उसमें धनधान्यसे सम्पन्न एक सुसीमा नगर है। वहाँ किसी समय विमल वाहन नामका राजा राज्य करता था। राजा विमल वाहन समस्त गुणोंसे विभूपित था। वह उत्साह, मन्त्र और प्रभाव इन तीन शक्तियोसे हमेशा न्याय पूर्वक प्रजाका पालन करता था। राज्य कार्य करते हुए भी वह कभी आत्म-धर्म-संयम, सामयिक वगैरहको नहीं भूलता था। वह बहुत ही मन्द कषायो था। एक दिन राजा विमलको छ कारण पाकर वैराग उत्पन्न हो गया। विरक्त होकर वह सोचने लगा-संसारके भीतर कोई भी पदार्थ स्थिर नहीं है। यह मेरी आत्मा भी एक दिन इस शरीरको छोड़कर चली जावेगी, क्यों. कि आत्मा और शरीरका सम्बन्ध तभीतक रहता है जबतक कि आयु शेष रहती है । यह आयु भी धीरे धीरे घटती जा रही है इसलिए आयु पूर्ण होने के पहले हो आत्म कल्याणकी ओर प्रवृत्ति करनी चाहिये ।।
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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