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________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण * ऐसे तालाब देखनेका फल यह है कि कालान्तर है मध्य खण्डमें सद्धर्मका अभाव हो जावेगा और वह आस पासमें स्थिर रहेगा। धूलि धूसर रत्नोंके देखनेसे ज्ञात होता है कि दुःषम कालमें मुनियोंके ऋद्धियां उत्पन्न नहीं होगी। ___कुत्तेका मत्कार देखना घतलाता है कि आगे चलकर व्रत रहित ब्राह्मण पूजे जावेंगे। घूमते हुये जवान चैलके देखनेका यह फल है कि मनुष्य जवानीमें ही मुनि व्रत धारण करेंगे। चन्द्रमाके परिवेष-घेरा देखनेसे मालूम होता है कि कलिकालके मुनियोंको अवधि ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। परस्पर मिलकर जाते हुये बैलोंको देखनेसे प्रकट होता है कि साधु एकाकी अकेले विहार नहीं कर सकेंगे। सूर्यका मेघोंमें छिप जाना बतलाता है कि पंचम कालमें प्रायः केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होगा। __सूखा वृक्ष देखनेसे 'पुरुष और स्त्रियां चरित्रसे च्युत हो जावेंगी' यह प्रकट होता है। . और वृक्षोंके जीर्ण-पके हुये पत्तोंके देखनेसे विदित होता है कि पंचम युगमें महौषधियां तथा रस वगैरह नष्ट हो जावेंगे।" ___इस तरह उन्होंने स्वप्नोंका फल बतलाकर भरत आदि समस्त स्रोताओंको विघ्न शान्तिके लिये धर्ममें दृढ़ रहनेका उपदेश दिया। देवाधिदेव वृषभनाथकी अमृतवाणीसे सन्तुष्ठ होकर भरत महाराजने विघ्न शान्तिके लिये उनकी पूजा की स्तुति की और अन्तमें नमस्कार कर अयोध्यापुरीकी ओर प्रस्थान किया। भरतके मरीचि, अर्ककीर्ति आदि पुत्र उत्पन्न हुये थे ग्रन्ध विस्तारके भयसे उन सबका यहां उपाख्यान नहीं किया जाता है। एक दिन मेघेश्वर जयकुमार जो कि भरत चक्रवर्तीका सेनापति था उसने संसारसे विरक्त होकर जिन दीक्षा ले ली और तपको विशुद्धिसे मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त करके जिनेन्द्र वृषभदेवका गणधर बन गया। केवल ज्ञानसे
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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