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________________ ७० * चौवीस तीर्थकर पुराण * भरत-राजके निर्मल यशके समान मालूम होते थे, गगनमें जो सूर्य चमकता था वह सम्राटके तीव्र प्रतापकी तरह जान पड़ता था, रातमें निर्मल चन्द्रमा शोभा देता था, जो कि भरतके साधु स्वभावकी तरह दिखाई देता था नद नदी तालाव आदिका पानी स्वच्छ हो गया था, सूर्यकी तेजस्वी किरणोंसे मार्गों का कीचड़ सूख गया था, तालावोंमें दिनमें कमल और रातमें कुमुद फूलते थे। उनपर भमर जो मनोहर गुजार करते थे सो ऐसा मालूम होता था, मानों वे भरत-राजका यशही गा रहे हैं । हंस अपने सफेद पर फैलाकर निर्मल नीले नभमें उड़ते हुए नजर आते थे, उस समय प्रकृति रानी की शोभा सबसे निराली थी। भरतने उस समयको ही दिग्विजयके लिये योग्य समझकर शुभ मुहूर्त में प्रस्थान किया। प्रस्थान करते समय गुरुजनोंने भरतका अभिषेक किया। सुन्दर वस्त्राभूषण पहिनाये, माथे पर कुकुम का तिलक लगाया और आरती उतारी थी । समस्त वृद्धजनोंने आशीर्वाद दिया, बालकोने अदम्य उत्साह प्रकट किया और महिलाओंने पुष्प तथा धानके खीले बरसाये थे। उस समय भरत-राजकी असंख्य सेना उमड़ते हुए समुद्रकी तरह मालूम होती थी । वृषभनन्दन भरत कुमार आद्य चक्रवर्ती थे, इसलिये उनके चौदह रत्न और नौ निद्धियां प्रकट हुई थीं । रत्नोंके नाम ये हैं-१ सुदशन चक्र, २ सूर्यप्रभ छत्र, ३ सौनन्दक खंग, ४ चण्डवेग दण्ड ५ चर्म रत्न ६ चूडामणि मणि चिन्ताजननी काकिणी ८ कामवृष्टि गृहपति ६ अयोध्य सेनापति १० भद्रमुख तक्षक ११ बुद्धि सागर पुरोहित १२ विजयाधं-याग हस्ती १३ पवनंजय अश्व और १४ मनोहर सुभद्रा स्त्री । इनमें से प्रत्येक रत्न की एक एक हजार देव रक्षा करते थे। ये सव रत्न दिग्विजयके समय चक्रवर्तीके साथ चल रहे थे। इनके रहते हुए उन्हें कोई भी काम कठिन मालूम नहीं होता था । नव निधियां ये हैं-१ काल २ महाकाल ३ पाण्डक ४ मानवाख्य ५ वैरूपाख्य ६ सर्व रत्नाख्य ७ शङ्ख ८ पद्म और पिंगलाख्य । इन निधियों की भी हजार हजार देव रक्षा करते थे। निधियोंके रहते हुए भरत सम्राटको कभी धन धान्यकी चिन्ता नहीं करनी पड़ती थी । इच्छानुसार समस्त वस्तुयें निधियोंसे ही प्राप्त हो जाती थीं। भरत चक्रवर्ती अपने तक्षक रत्न ( उत्तम
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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