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________________ * चौबीस तीथक्कर पुराण * ६५ ComeTHE फाल्गुन कृष्ण एकादशीके दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें सकल पदार्थोको प्रकाशित करने वाले केवल ज्ञानका लाभ किया। भगवान् आदिनाथ केवल ज्ञानके द्वारा तीनों लोकों और तीनों कालोंके समस्त पदार्थो को एक साथ जानने देखने लगे थे। ज्ञानावरणके नाश होनेसे उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। दर्शनावरणके अभावनें केवल दर्शन और मोहनीयके अभावमें अनन्त सुख और अन्तरायके अभाव में अनन्त वीर्य प्राप्त हुआ था। वृषभ जिनेन्द्रको केवलज्ञान प्राप्त हुआ है इस बातका जब इन्द्रको पता चला तब यह समस्त परिवारके साथ भगवानकी पूजाके लिये 'पुरीमतालपुर' आया। इन्द्र के आनेके पहिले ही धनपति कुवेरने वहाँ दिव्य सभा-समवसरण की रचना कर दी थी। वह सभा बारह योजन विस्तृत नील मणिकी गोल शिला तलपर बनी हुई थी। जमीनसे पांच हजार धनुष ऊंची थी। ऊपर पहुंचनेके लिये उसमें बीस हजार सीढ़ियां बनी हुई थीं, उस सभाके चारों ओर अनेक मणिमय सुवर्णमय कोट बने हुए थे। उसमें चारों दिशाम कर मानस्तम्भ बनाये गये थे, जिन्हें देखनेसे मानियोंका मान खण्डिन हो कर था। अनेक नाट्यशालायें बनी हुई थीं जिनमें स्वर्गकी अप्सरायें भगदनि से प्रेरित होकर नृत्य कर रही थीं। अनेक परिखाएं थीं, जिनमें सहलान-1 हजार पांखुड़ी वाले कमल फल रहे थे। वहांके रनमय वाई पहरा दे रहे थे। ऊपर चलकर भगवानकी गन्ध कृमी भ ई रत्नमय सिंहासन रक्खा हुआ था। सिंहामनके क म र गया था, उसके सब ओर परिक्रमा रूपसे बाद न ई जिनमें देव देवियां, मनुष्य, तिच, म. दर सकते थे। कुवेरके द्वारा बनाई हुई होईन । हर्षित हुआ, और भक्तिसे जय, हर का के साथ वहां पहुंचा जहाँ पुरा : थे। ऊपर जिस गन्ध - - सिंहासन पर चार = - - तेजसे सव ओर : इन्द्र देना Santan A mASARDASTI
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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