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________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण * - के योग्य समझकर उन्हें विद्याप्रदान करनेका निश्चय किया और निश्चयानुसार वर्णमाला सिखलानेके बाद उन्होंने ब्राह्मीको गणित शास्त्र और सुन्दरी को व्याकरण छन्द तथा अलङ्कार शास्त्र सिलाये । ज्येष्ठ पुत्र भरतके लिये अर्थ शास्त्र और नाट्य शास्त्र, वृषभसेन के लिये संगीत शास्त्र, अनन्त विजयके लिये चित्रकला और घर बनाने की विद्या, बाहुबलीके लिये कामतन्त्र, सामुहिक शास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद हस्तितन्त्र अश्वतन्त्र तथा रत्न परीक्षा आदि शास्त्र पढ़ाये । इसी तरह अन्य पुत्रोंके लिये भी लोकोपकारो समस्त शास्त्र पढ़ाये । उस समय अनेक शास्त्रोंके जानकार पुत्रोंसे घिरे हुए भगवान् तेजस्वी किरणोंसे उपलक्षित सूर्यके समान मालूम होते थे। इस तरह महा पवित्र पुत्र और स्त्रियोंके साथ विनोद मय जीवन बिताते हुए भगवान् वृषभनाथ का बहुत कुछ समय क्षण एक के समान बीत गया था। यह पहले लिख आये हैं कि वह समय अवसर्पिणी काल का था इसलिये प्रत्येक विषयमें हास हो हास होता जाता था। कुछ समय पहले कल्पवृक्षों के बाद बिना बोयी हुई धान्य पैदा होती थी पर अब वह नष्ट हो गई , औषधि वगैरह की शक्तियां कम हो गई इसलिये मनुष्य खाने पीनेके लिये दुखी होने लगे । सब ओर ब्राहि त्राहिकी आवाज सुनाई पड़ने लगी। जब लोगों को अपनी रक्षाका कोई भी उपाय नहीं सूझ पड़ा तब वे एकत्रित होकर महाराज नाभिराजकी सलाहसे भगवान् वृषभनाथके पास पहुंचे। और दीनता भरे वचनों में प्रार्थना करने लगे “हे त्रिभुवनपते ! हे दयानिधे ! हम लोगोंके दुर्भाग्य से कल्पवृक्ष तो पहले ही नष्ट हो चुके थे पर अव रही सही धान्य वगैरह भी नष्ट हो गई है। इसलिये भूख प्यासकी वाधायें हम सब को अधिक कष्ट पहुंचा रही हैं वर्षा, धूप, और शीसे बचने के लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है नाथ ! इस तरह हम लोग कय तक जीवित रहेंगे आप हम सबके उपकार के लिये ही पृथ्वी तल पर उत्पन्न हुए हैं। आप विज्ञ हैं, समर्थ हैं, दयालुताके समुद्र हैं इसलिये जीविकाके कुछ उपाय पतला कर हमारी रक्षा कीजिये, प्रसन्न होइये ।” इस तरह लोगों की आर्त वाणी सुनकर भगवान् वृषभदेव का हृदय दयासे भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि पूर्व पश्चिम विदेहोंकी
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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