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________________ * चोवीस तीर्थङ्कर पुराण २५३ दशरथकी पटरानी हुई थी। प्रभावतीका विवाह-सम्बन्ध कच्छदेशके रोरुकनगरके स्वामी राजा उदयनके साथ हुआ था। प्रभावतीका दूसरा नाम शीलवती भी प्रचलित था। चेलिनी मगध. देशके राजगृह नगरके राजा श्रेणिककी प्रिय पत्नी हुई थी। ज्येष्ठा और चन्दना इन दो पुत्रियोंने संसारसे विरक्त होकर आर्यिकाके व्रत ले लिये थे। इस तरह महाराज सिद्धार्थका बहुतसे प्रतिष्ठित राजवंशोंके साथ मैत्री-भाव था। सिद्धार्थने अपनी शासन प्रणालीमें बहुत कुछ सुधार किया था। ऊपर जिस इन्द्रका कथन कर आये हैं वहां (अच्युत स्वर्गमें ) जब उसकी आयु छह माहकी बाकी रह गई तबसे सिद्धार्थ महाराजके घरपर रत्नोंकी वर्षा होनी शुरू हो गई। अनेक देचियां आ-आकर प्रियकारिणीकी सेवा करने लगीं। इन सब कारणोंसे महाराज सिद्धार्थको निश्चय हो गया था कि, अब हमारे नाथ वंशमें कोई प्रभावशाली महापुरुष पैदा होगा। ___ आषाढ़ शुक्ल षष्ठीके दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें रात्रिके पिछले पहरमें त्रिशलाने सोलह स्वप्न देखे और स्वप्न देखनेके बाद मुंहमें प्रवेश करते हुए एक हाथीको देखा। उसी समय उस इन्द्रने अच्युत स्वर्गके पुष्पोत्तर विमान से मोह छोड़कर उसके गर्भ में प्रवेश किया। सबेरा होते ही रानीने स्नानकर पतिदेव-सिद्धार्थ महाराजसे स्वप्नोंका फल पूछा। उन्होंने भी अवधिज्ञानसे विचार कर कहा कि तुम्हारे गर्भसे नव माह बाद तीर्थङ्कर पुत्र उत्पन्न होगा। जो कि सारे संसारका कल्याण करेगा-'लोगोंको सच्चे रास्तेपर लगावेगा।' पतिके वचन सुनकर त्रिशला मारे हर्षके अङ्गमें फूली न समाती थी। उसी समय चारों निकायके देवोंने आकर भावि भगवान महावीरके गर्भावतरणका उत्सव किया तथा उनके माता-पिता त्रिशला और सिद्धार्थका खूप सत्कार किया। गर्भकालके नौ माह पूर्ण होनेपर चैत्र शुक्ल त्रयोदशीके दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में सबेरेके समय त्रिशलाके गर्भसे भगवान् वर्द्धमानका जन्म हुआ। उस समय अनेक शुभ शकुन हुए थे। उनकी उत्पत्तिसे देव,
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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