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________________ .३४ * चौबीस तीथकर पुराण * हमें जिस समयका वर्णन करना है उस समय यहां अवसर्पिणीका तीसरा सुषम दुषमा काल चल रहा था। तीसरे कालमें यहां जघन्य भोग भूमि जैसी रचना थी। कल्प वृक्षोंके द्वारा ही मनुष्योंकी आवश्यकताएं पूर्ण हुआ करती थी। स्त्री और पुरुष साथमें ही उत्पन्न होते थे और वे सात सप्ताहमें पूर्ण जवान हो जाते थे। उस समय कोई किसी बातके लिये दुःखी नहीं था सभी मनुष्य एक समान वैभव वाले थे, कोई किसीके आश्रित नहीं था, सभी स्वतन्त्र थे। पर ज्यों ज्यों तीसरा काल बीतता गया त्यों त्यों ऊपर कही हुई बातोंमें न्यूनता होती गई। यहांतक कि तीसरे कालके अन्तिम पल्यमें बहुत कुछ परिवर्तन हो चुके थे। ____स्त्री पुरुषोंका एक साथ उत्पन्न होना बन्द हो गया, पहले वालक बालि काओंके उत्पन्न होते ही उनके माता पिताकी मृत्यु हो जाती थी पर जब वह प्रथा धीरे-धीरे बन्द होने लगी, कल्पवृक्षोंकी कांति फीकी पड़ गयी और फिर धीरे-धीरे वे नष्ट भी हो गये। विना वपन किये हुए अनाज पैदा होने लगा, सिंह व्याघ्र आदि जानवर उपद्रव करने लगे। इन सब विचित्र परिवर्तनों से जव जनता घबड़ाने लगी तब क्रमसे इस भारतवर्ष में प्रतिश्रुति १ सन्मति २ क्षेमंकर ३ क्षेमंधर ८ सीमंकर ५ सीमंधर ६ विमल बाहन ७ चक्षुष्मान ८ यशस्वी ह अभिचन्द्र १० चन्द्राभ ११ मरू देव १२ प्रसेन जित १३ और नाभिराज १४ ये चौदह महापुरुष हुए। इन महापुरुषोंने अपने बुद्धि बलसे जनताका संरक्षण किया था इसलिये लोग इन्हें कुलकर कहते थे। यहाँपर चौदहवें कुलकर नाभिराजका कुछ वर्णन करना अनावश्यक नहीं होगा क्योंकि कथानायक भगवान वृषभनाथका इनके साथ विशेष सम्बन्ध रहा है। __ यहां जब भोगभूमिको रचना मिट चुकी थी और कर्मभूमिकी रचना प्रारम्भ हो रही थी तब अयोध्या नगरीमें अन्तिम कुलकर नाभिराजका जन्म हुआ था। ये स्वभावसे ही परोपकारी, मृदुभाषी और प्रतिभाशाली पुरुष थे। इनकी आयु एक करोड़ पूर्वकी थी और शरीरकी ऊंचाई पांच सौ पच्चीस धनुषकी थी। इनके मस्तकपर बन्धा हुआ सोनेका मुकुट बड़ा ही भला मालूम होता था। इनके समयमें उत्पन्न होते समय बालककी नाभिमें नाल दिखाई PRITEmore DAE -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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