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________________ * चोवीस तीर्थकर पुराण * २२५ जब वे लोग अपने अपने घर जाने लगे तब साथमें वहांके कुछ बहुमूल्य रत्न लेते गये। वैश्य पुत्रोंने राजनगरमें पहुंचकर वहांके महाराज जरासंधके दर्शन किये और वे रत्न भेंट किये। जरासंधने रत्न देखकर उन वैश्य पुत्रों से पंछा कि आप लोग ये रत्न कहांसे लाए हैं।' तब उन्होंने कहा कि 'महाराज ! हम लोग समुद्र में रास्ता भूल गये थे इसलिये घूमते-घूमते एक नगरीमें पहुंचे। पंछनेपर लोगों ने उसका नाम द्वारिका बतलाया था। वह पुरी अपनी शोभासे स्वर्गपुरीको जीतती है। इस समय उसमें महाराज समुद्रविजय राज्य करते हैं। उनके नेमिनाथ तीर्थकर हुये हैं । जिससे वहां नर और देवों की खूष चहल पहल रहती है वसुदेवके पुत्र श्रीकृष्णकी तो बात हीन पूछिये। उसका निर्मल यश सागरकी तरल तरङ्गोंके साथ अठ-खेलियां करता है। उसकी वीर चेष्टायें समस्त नगरीमें प्रसिद्ध हैं। श्रीकृष्णका बड़ा भाई बलराम भी कम बलवान् नहीं है । उन दोनों भाइयोंमें परस्परमें खूब स्नेह है । वे एक दूसरेके बिना क्षण भर भी नहीं रहते हैं। हम उसी नगरीसे ये रत्न लाये हैं'... वैश्य पुत्रोंके बचन सुनकर राजा जरासंधके क्रोधका ठिकाना न रहा। अभी तक तो वह समस्त यादव विन्ध्याटवीमें जल कर मर गए हैं, ऐसा निश्चय कर निश्चिन्त था पर आज वैश्य पुत्रोंके मुंहसे उनक सद्भाव और वैभवकी बार्ता सुनकर प्रतिस्पर्द्धासे उसके ओंठ कांपने लगे। आंखें लाल हो गई और भौंह टेढ़ी हो गई। उसने वैश्य पुत्रोंको बिदा कर सेनापतिके लिए उसी समय एक विशाल सेना तैयार करने कीआज्ञा दी और कुछ समय बाद सज-धज कर द्वारिकाकी ओर रवाना हो गया । इधर जब कौतूहली नारदजीने यादवोंके लिये जरासंधके आनेका समाचार सुनाया तब श्रीकृष्ण भी शत्रुको मारनेके लिये तैयार हो गये। उन्होंने समुद्र विजय आदिकी अनुमतिसे एक विशाल सेना तैयार करवाई जो शत्रुको बीचमें ही रोकनेके लिये तैयार हो गये। जाते समय श्रीकृष्णचन्द्र भगवान् नेमिनाथके पास जाकर बोले कि, जप तक मैं शत्रुओंको मारकर वापिस न आ जाऊं तबतक आप राज्य कार्योंकी देख भाल करना। बड़े भाई कृष्णचन्द्रके बचन नेमिनाथने सहर्ष स्वीकार कर लिये । वापिस जाते समय कृष्णचन्द्रने उनसे पूछा 'भगवन् ! इस युद्ध यात्रामें मेरी
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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