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________________ * चाबीस तीथकर पुराण* ३५ - RA देने लगी थी । महाराज नाभिराजने उस नालके काटनेका उपाय बतलाया था इसलिये उनका नाभि......यह सार्थक नाम सिद्ध हुआ था। इन्हींके समयमें आकाशमें श्यामल मेघ दिखने लगे थे और उनमें इन्द्रधनुपकी विचित्र आभा छिटकने लगी थी। कभी उन मेघोंमें मृदङ्गाके शब्द जैसा सुन्दर शब्द सुनाई पड़ता और कभी बिजली चमकती थी। वर्षा होनेसे पृथ्वीकी अपूर्व शोभा हो गई थी। कहीं सुन्दर निर्भर कलरव करते हुए बहने लगे थे, कहीं पहाड़ोंकी गुफाओंसे इठलाती हुई नदियां बहने लगी थीं, कहीं मेघोंकी गर्जना सुनकर बनोंमें मयूर नाचने लगे थे, आकाशमें सफेद घगुले उड़ने लगे थे और समस्त पृथवीपर हरी हरी घास उत्पन्न हो गई थी जिससे ऐसा मालूम पड़ता था मानो पृथवी हरी साड़ी पहिनकर नवीन अभ्यागत पावस ऋतुका स्वागत करने के लिये ही उद्यत हुई हो। उस वर्षासे खेतोंमें अपने आप तरह तरहकी धान्यके अंकूरे उत्पन्न होकर समयपर योग्य फल देने वाले हो गये थे। इस तरह उस समय यद्यपि भोग उपभोगकी समस्त सामग्री मौजूद थी परन्तु उस समयकी प्रजा उसे काममें लाना नहीं जानती थी इसलिये वह उसे देख कर भ्रममें पड़ गई थी । अवनक भोगभूमि विलकुल मिट चुकी थी, और कर्म युगका प्रारम्भ हो गया था, परन्तु लोग कर्म करना जानते नहीं थे इसलिये वे भूख प्याससे दुःखी होने लगे। एक दिन चिन्तासे आकुल हुए समस्त प्राणी महाराज नाभिराजके पास पहुंचे और उनसे दीनता पूर्वक प्रार्थना करने लगे। महाराज ! पापके उदयसे अव मनचाहे फल देने वाले कल्पवृक्ष नष्ट हो गये हैं इसलिये हम सब भूख प्याससे व्याकुल हो रहे हैं, कृपाकर जीवित रहने का कुछ उपाय बतलाइये। नाथ ! देखिये, कल्पवृक्षोंके बदले ये अनेक तरहके वृक्ष उत्पन्न हुए हैं जो फल के भारसे नीचेको झुक रहे हैं। इनके फल खानेसे हम लोग मर तो न जावेंगे और ये खेतोंमें कई तरहके छोटे छोटे पौधे लगे हुए हैं जो बालोके भारसे झुकनेके कारण ऐसे मालूम होते हैं मानो अपनी जननी मही देवीको नमस्कार ही कर रहे हों । कहिए, ये सब किसलिए पैदा हुए हैं ? महाराज ! आप हम सबके रक्षक हैं, वुद्धिमान हैं, इसलिए इस संकटके समय हमारी रक्षा कीजिए।
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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