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________________ * चौबीस तीथक्कर पुराण * १६६ हो गया। उसी समय लौकान्तिक देवोंने आकर स्तुति की और उनके विचारोका समर्थन किया जिससे उनकी वैराग्य भावना बड़ी ही प्रबल हो उठी थी लौकान्तिक देव अपना कार्य पूरा समझ कर स्वर्गको चले गये और उनके बदले समस्त देव देवेन्द्र आये । उन सबने मिलकर भगवान् अरनाथका दीक्षा अभिषेक किया तथा वैराग्यको बढ़ाने वाले अनेक उत्सव किये। भगवान् अरनाथ अपने पुत्र अरविन्दकुमारके लिये राज्य देकर देव निर्मित बैजयन्ती नामकी पालकी पर सवार हो सहेतुक घनमें पहुंचे। वहां उन्होंने दो दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा लेकर मगसिर शुक्ला दशमीके दिन रेबनी नक्षत्रके समय जिनदीक्षा धारण करली-समस्त वस्त्रा भूषण उतारकर फेंक दिये और पंच मुष्टियोंसे सिर परके केश उखाड़ डाले। उन्हें उसी समय मनः पर्यंय ज्ञान भी प्राप्त हो गया था। उनके साथमें एक हजार राजाओंने भी दीक्षा ली थी। देव लोग निःक्रमण कल्याणकका उत्सव समाप्त कर अपने अपने घर चले गये और भगवान् अरनाथ मेरु पर्वतकी तरह अचल हो आत्मध्यानमें लीन हो गये । पारणेके दिन वे चक्रपुर नगरमें गये वहां उन्हें राजा अपराजितने आहार दिया। पात्रदानसे प्रभावित होकर देवोंने अपराजित राजाके घर पर पंचाश्चर्य प्रकट किये । आहार लेनेके बाद वे बनमें लौट आये और वहां कठिन तपश्चर्याओंके द्वारा आत्म शुद्धि करने लगे। उन्होंने कई जगह बिहार कर छद्मस्थ अवस्थाके सोलह वर्ष व्यतीत किये इन दिनोंमें वे मौन पूर्वक रहते थे। इसके अनन्तर ने उसी सहेतु बनमें आकर दो दिनके उपवास की प्रतिज्ञा ले माकन्द-आमके पेड़के नीचे बैठ गये। वहां पर उन्हें घातिया कमौका क्षय हो जानेसे कार्तिक शुक्ला द्वादशीके दिन रेवती नक्षत्र में शामके समय पूर्णज्ञान-केवलज्ञान प्राप्त हो गया जिससे वे समस्त जगत्की चराचर वस्तुओंको हस्ताकमलबत् स्पष्ट जानने लगे। उसी समय देवों ने आकर ज्ञान कल्याणकका उत्सव किया । कुवेरने दिव्य सभा--समवसरणकी रचनाकी जिसके मध्यमें सिंहासन पर अन्तरीक्ष विराजमान होकर उन्होंने अपना सोलह वर्षका मौन भङ्ग किया मधुर ध्वनिमें सबको उपदेश देने लगे। उपदेशके समय समवसरणकी बारहों सभाएं खचा खच भरी हुई थीं। उनके -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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