SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण * १६) एकके लिये नारकी भी सुखी हो गये। उसी समय भक्तिसे प्रेरे हुए चारों निकायके देव हस्तिनापुर आये और वहांसे उस सद्य प्रस्त बालकको मेरु पर्वत पर ले गये। वहां उन्होंने क्षीर सागरके जलसे उसका कलशाभिषेक किया। अभिषेक समाप्त होने पर इन्द्राणीने उन्हें बालोचित आभूषण पहिनाये और इन्द्रने मनोहर शब्दोंमें उनकी स्तुतिकी । इसके अनन्तर समस्त देव हर्ष से नाचते गाते हुए हस्तिनापुर आये। इन्द्र, जिन बालकको अपनी गोदमें लिये हुए ऐरावत हाथीसे नीचे उतरा और राजभवनमें जाकर उसने यालकको माता श्रीकांताके पास भेजा और भगवान् कुन्थुनाथ नाम रक्खा। ___ भगवान् कुन्थुनाथके जन्मोत्सवसे हस्तिनापुर ऐसा मालूम होता था मानो इन्द्रपुरी ही स्वर्गसे उतरकर भूलोक पर आ गई हो। उधर उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने घर गये इधर बालक कुन्थूनाथका राज परिवारमें बड़े प्यारसे पालन होने लगा। इन्द्र प्रति दिन स्वर्गसे उनकी मनभावती वस्तुएं भेजा करता था और अनेक देव विक्रियासे तरह तरहके रूप बनाकर उन्हें प्रसन्न रखते थे। द्वितीयाके चन्द्रमाकी तरह क्रम क्रमसे बढ़ते हुये भगवान् कुन्थुनाथ यौवन अवस्थाको प्राप्त हुए । उस समय उनके शरीरकी शोभा षड़ी ही विचित्र हो गई थी। महाराज शूरसेनने उनका कई योग्य कन्याओंके साथ विवाह किया और कुछ समय बाद उन्हें युवराज बना दिया। भगवान् शांतिनाथके मोक्ष जानेके याद जय आधा पल्य बीत गया था तब श्री कुन्थुनाथ तीर्थङ्कर हुए थे। उनकी आयु भी इसीमें शामिल है। उनका शरीर पेंतालीस धनुष ऊंचा था शरीरकी कान्ति सुवर्णके समान पीली थी, और आयु पंचानवे हजार वर्षकी थी। - जव उनकी आयुके तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष बीत गथे तब उन्हें राज्य प्राप्त हुआ था। और जब इतना ही समय राज्य करते हुए बीत गया था तब चक्ररत्न प्रप्त हुआ था। चक्ररत्नके प्राप्त होते ही वे समस्त सेना के साथ षटखण्डोंकी विजयके लिये निकले और कुछ वर्षों में समस्त भरतक्षेत्रमें अपना शासन प्रकट कर हस्तिनापुरको वापिस लौट आये । जब दिग्विजयी कुन्थुनाथने राजधानीमें प्रवेश किया था तय बत्तीस हजार मुकुटवद्ध राजाओंने उनका स्वागत किया था। देवों २५
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy