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________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण' २७५ - कुण्डिनपुर नगरके राजा प्रताप राजका दूत सभामें आया और महाराजको सविनय नमस्कार कर उचित स्थान पर बैठ गया। राजाने उससे आनेका | कारण पूछा तब उसने हाथ जोड़ कर कहा कि महाराज ! विदर्भदेश-कुण्डि नपुरके राजा प्रतापराजने अपनी लड़कीशृंगारवतीका स्वयम्वर रचनेका निश्चय किया है मैं उसमें शामिल होनेके लिये युवराजको निमन्त्रण देने आया हूँ। यह भंगारवतीका चित्रपट है' कहकर उसने एक चित्रपट राजाके सामने रख दिया। ज्योंही राजाकी दृष्टि उस चित्रपट पर पड़ी त्योंही वे शृंगारवतीका रूपदेख चकित रह गये। उन्होंने मनमें निश्चय कर लिया कि यह कन्या सर्वथा धर्मनाथके योग्य है । पर उन्होंने युवराजका अभिप्राय जाननेके लिये उनकी ओर दृष्टि डाली। युवराजने भी मन्द मुसकानसे पिताके विचारोंका समर्थन कर दिया फिर क्या था ? राजा महासेनने दूतका सत्कार कर उसे विदा किया और युवराजको असंख्य सेनाके साथ कुण्डिनपुर भेजा युवराजका एक घनिष्ट मित्र प्रभाकर था जो स्वयंबर यात्राके समय उन्हींके साथ था मार्गमें जय वे विन्ध्याचल पर पहुंचे तब प्रभाकरने मनोहर शब्दोंमें उसका वर्णन किया। वहीं एक किन्नरेन्द्रने अपनी नगरीमें लेजाकर युवराजका सन्मान किया। उनके साथकी समस्त सेना उस दिन वहीं पर सुखसे रह आई। भगवान् धर्मनाथके प्रभावसे वहां बनमें एक साथ छहों ऋतुएं प्रकट हो गई थीं। जिससे सैनिकोंने तरह तरहकी क्रीडाओंसे मार्गश्रम-थकावट दूर की। वहांसे चलकर कुछ दिन बाद जब वे कुण्डिनपुर पहुंचे तब वहांके राजा प्रताप राजने प्रतिष्ठित मनुष्योंके साथ आकर युबराजका खूप सत्कार किया और बड़ा हर्ष प्रकट किया। प्रतापराजने युवराजको एक विशाल भवनमें ठहराया। | उनके पहुंचनेसे कुण्डनपुरकी सजावट और खूब की गई थी। धीरे धीरे अनेक राजकुमार आ आकर कुण्डिनपुरमें जमा हो गये। किसी दिन निश्चित समय पर स्वयम्बर सभा सजाई गई। उनमें चारों ओर ऊंचे ऊंचे सिंहासनोंपर राजकुमार बैठाये गये। युवराज धर्मनाथने भी प्रभाकर मित्रके साथ एक ऊंचे | आसनको अलंकृत किया। कुछ देर बाद कुमारी शृङ्गारवती हस्तिनीपर बैठकर स्वयम्बर मण्डपमें आई। उनके साथ अनेक सहेलियां भी थीं। सुभद्रा नाम - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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