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________________ १६८ • चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * - ङ्कित दान दिया। देव लोग जन्मका उत्सव पूरा कर अपने अपने घर गये। इधर राज परिवारमें बालक अनन्तनाथका बड़े प्यारसे लालन-पालन होने लगा ये अपनी पाल कालकी मनोहर चेष्टाओंसे माता पिताका कौतुक बढ़ाते थे। ___भगवान् विमलनाथके बाद नौ सागर और पौन पल्य बीत जाने पर श्री अनन्तनाथ हुए थे। इनकी आयु तीस लाख वर्षकी थी, पचास धनुष ऊंचा शरीर था, स्वर्णके समान कान्ति थी इन्हें जन्मसे ही अवधि ज्ञान था। सात लाख पचास हजार वर्ष बीत जाने पर उन्हें राज्यकी प्राप्ति हुई थी। वे साम, वाम, भेद और दण्डके द्वारा राज्यका पालन करते थे। असंख्य राजा इनकी आज्ञाको मालाकी तरह अपने शिरका आभूषण बनाते थे। ये प्रजाको चाहते थे और प्रजा इनको चाहती थी। महाराज सिंहसेनने इनका कई सुन्दर कन्याओंके साथ विवाह करवाया था। जिससे इनका गृहस्थ जीवन अनन्त सुखमय हो गया था। ____ जय राज्य करते हुए इन्हें पन्द्रह लाख वर्ष बीत गये तब एक दिन उलका पात होनेसे इन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। इन्होंने समस्त संमारसे. ममत्व छोड़कर दीक्षा लेनेका पक्का निश्चय कर लिया। उसी समय लौकान्तिक देवोंने आकर उनकी स्तुति की, उनके विचारोंकी सराहना की और अनित्य आदि पारह भावनाओंका स्वरूप प्रकट किया जिससे उनकी वैराग्य धारा और भी अधिक द्रुगतिले वाहित होने लगी। निदान भगवान् अनन्तनाथ, अनन्त विजय नामक पुत्रके लिये राज्य देकर देव निर्मित सागर दत्ता पालकी पर सवार हो सहेतुक पनमें पहुंचे। वहां उन्होंने तीन दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा कर ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशीके दिन रेवती नक्षत्र में शामके समय एक हजार राजाओंके साथ जिन दीक्षा ले ली । देवोंने दीक्षा कल्याणकका उत्सव किया। उन्हें दीक्षा लेते ही मनापर्यय ज्ञान तथा अनेक ऋद्धियां प्राप्त हो गई थीं। प्रथम योग समाप्त हो जानेके बाद वे आहारके लिये साकेत अयोध्यापुरीमें गये। यहां पुण्यात्मा पिशाखने पढ़गाह कर उन्हें नवधा भक्ति पूर्वक आहार दिया। देवोंने उसके घर पर पञ्चाश्चर्य प्रकट किये । भगवान् अनन्तनाथ आहार लेनेके बाद पुनः मनमें लौट आये और वहां योग धारण कर, विराजमान हो गये। । ।
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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