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________________ १४० * * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * को रचना की थी जिसमें समस्त प्राणी सुखसे बैठे थे। समवसरणके मध्य में स्थित होकर भगवान चन्द्रप्रभने अपना मौन भङ्ग किया अर्थात दिव्य ध्वनिके द्वारा कल्याणकारी उपदेश दिया। उनके उपदेशसे प्रभावित होकर अनेक नर नारियोंने मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाओंके व्रत धारण किये। दिव्य ध्वनि समाप्त होनेके बाद इन्द्रने बिहार करने की प्रार्थना की जिससे उन्होंने अनेक देशोंमें बिहार किया और अनेक भव्य प्राणियोंको संसार सागरसे निकाल कर मोक्ष प्राप्त कराया। उनके समवसरणमें दत्त आदि तेरानवे गणधर थे, दो हजार द्वादशाङ्ग के जानकार थे, दो लाख चार सौ शिक्षक थे, दश हजार केवली थे, चौदह हजार विक्रिया ऋद्धि वाले थे, आठ हजार मनः पर्यय ज्ञानी थे, और सात हजार छह सौ षादी थे इस तरह सब मिलाकर ढाई लाख मुनिराज थे। वरुण आदि तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकाएं थीं। तीन लाख श्रावक और पांच लाख श्राविकाएं थीं । असंख्यात देव देवियां और संख्यात तिर्यञ्च थे। उन्हों ने अनेक जगह घूम घूमकर धर्म तीर्थकी प्रवृत्तिकी और अन्तमें सम्मेद शिखर पर आ विराजमान हुए। वहां उन्होंने हजार मुनियोंके साथ प्रतिमा . योग धारण किया जिससे उन्हें एक माह बाद फाल्गुन शुक्ला सप्तमीके दिन ज्येष्ठा नक्षत्रमें शामके समय मोक्षकी प्राप्ति हो गई। देवोंने आकर उनके निर्वाण क्षेत्रकी पूजा की। y " - भगवान पुष्पदन्त शान्तं वपुः श्रवणहारि वचश्चरित्रं, सर्वोपकारी तव देव ! ततो भवन्तम् । संसार मारव महास्थल रुद्रसान्द्र . च्छाया महीरुह मिमे सुविधि श्रयामः॥ -आचार्य गुणभद्र
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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