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________________ १३८ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * - - - ( २ ) वर्तमान परिचय जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें एक चन्द्रपुर नामका नगर है उसमें किसी समय इक्ष्वाकुवंशीय राजा महासेन राज्य करते थे उनकी स्त्रीका नाम लक्ष्मणा था। दोनों दम्पती सुखसे समय विताते थे। ऊपर जिस अहमिन्द्रका कथन कर आये हैं उसकी जब वहांकी आयु छह माहकी वाकी रह गई थी तभीसे राजा महासेनके घरपर प्रति दिन अनेक रत्नोंकी वर्षा होने लगी और देवियां आ आकर महारानी लक्ष्मणाकी सेवा करने लगीं। वह सब देखकर राजाको निश्चय हो गया था कि सुलक्ष्मणाकी कुक्षिसे तीर्थंकर पुत्र होने वाला है। चैत्र कृष्ण पंचमीके दिन ज्येष्ठा नक्षत्रमें सुलक्ष्मणाने रातके पिछले भाग में हाथी, बैल आदि सोलह स्वप्न देखे। उसी समय वह अहमिन्द्र जयन्त विमानसे सम्बन्ध छोड़कर उसके गर्भ में आया। सवेरा होते ही देवोंने आकर भगवान चन्द्रप्रभके गर्भ कल्याणकका उत्सव किया और माता पिताकी स्वर्गीय वस्त्राभूषणोंसे पूजा की। ___ गर्भका समय बीत जानेपर लक्ष्मणा देवीने पौष कृष्ण एकादशीके दिन अनुराधा नक्षत्रमें मंति, श्रुत, अवधि इन तीन ज्ञानोंसे विराजित पुत्ररत्न उत्पन्न किया । भगवान् चन्द्रप्रभके जन्मसे समस्त लोकमें आनन्द छा गया। क्षण एकके लिये नारकियोंने भी सुखका अनुभव किया। उसी समय देवोंने मेरु पर्वतपर ले जाकर उनका जन्माभिषेक किया और चन्द्रप्रभ नाम रक्खा। बालक चन्द्रप्रभ अपनी सरल चेष्टाओंसे माता पिता आदिको हर्षित करते हुए बढ़ने लगे। श्री सुपार्श्वनाथ स्वामीके मोक्ष जानेके बाद नौ सौ करोड़ सागर वीत जानेपर अष्टम तीर्थकर भगवान चन्द्रप्रभ हुए थे। इनकी आयु भी इसीमें शामिल है । आयु दश लाख पूर्वकी थी, शरीर एक सौ पचास धनुष ऊंचा था, और रंग चन्द्रमाके समान धवल था। दो लाख पचास हजार वर्ष बीत जानेपर उन्हें राज्य विभूति प्राप्त हुई थी। उनका विवाह भी कई कुलीन
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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