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________________ ११२ * चौवीस तीर्थङ्कर पुराण * था। "जिस तरफके भव्य जीवों के विशेष पुण्यका उदय होता था, उसी तरफ मेघोंकी नाई उनका स्वाभाविक विहार हो जाता था। उनके उपदेशसे प्रभावित होकर अनेक नर नारी उनकी शिष्य दीक्षामें दीक्षित हो जाते थे। आचार्य गुणभद्रजीने लिखा है कि उनके समवसरणमें अमर आदि एक सौ सोलह गणधर थे, दोलाख चौअन हजार तीन सौ पचास शिक्षक थे, ग्यारह हजार अवधि ज्ञानो थे, तेरह हजार केवल ज्ञानी थे, दश हजार चार सौ मनः पर्यय ज्ञानी थे, अठारह हजार चार सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, और दश हजार चार सौ पचास वादो थे । इस तरह सब मिलाकर तीन लाख बीस हजार मुनि थे। अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएं थीं, तीन लाख श्रावक और पांच लाख भाविकाएं थीं। इनके सिवाय असंख्यात देव देवियां और संख्याय तिर्यञ्च थे। जब उनकी आयु एक माहकी थाकी रह गई तब वे सम्मेद शैल पर आये और वहीं योग निरोध कर विराजमान हो गये। वहां उन्हों ने शुक्ल ध्यानके द्वारा अघाति चतुष्ठयका क्षय कर चैत्र सुदी एकादशीके दिन मघा नक्षत्र में शामके समय मुक्ति मन्दिरमें प्रवेश किया। देवों ने सिद्धिक्षेत्र सम्मेदशिखर पर आकर उनकी पूजा की और मोक्ष कल्याणक का उत्सव कियो । । । SAMAND - उत्तमोत्तम ग्रन्थोंके मंगानेका पता. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, १६३१ हरीसन रोड, कलकत्ता। % 3A
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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