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________________ * चौबीस तीर्थकर पुराण * १०६ CHHAMRO - - - मनुष्य लोकमें भी दिशाएं निर्मल हो गई, आकाश निर्मेघ हो गया, दक्षिण की शोतल और सुगन्धित वायु धीरे धीरे बहने लगी, नदी तालावों आदि का पानी स्वच्छ हो गया। ___अथान्तर तीर्थकरके पुण्यसे परे हुए देव लोग चालक तीर्थंकरको सुमेरु पर्वत पर ले गये। वहां उन्होंने क्षीर सागरके जलसे उनका अभिषेक किया। अभिषेकके बाद इन्द्राणीने शरीर पोंछकर उन्हें बालोचित उत्तम उत्तम आभूषण पहिनाये और इन्द्रने स्तुति की। फिर जय जय शब्दसे समस्त आकाश को व्याप्त करते हुए अयोध्या आये और चालक को माता पिताके लिये सौंप कर उन्होंने बड़े ठाट वाटसे जन्मोत्सव मनाया। उसी समय इन्द्रने आनन्द नामका नाटक किया था। ___ पुत्र का अनुपम महात्म्य देख कर माता पिता हर्षसे फूले अंग न समाते थे । इन्द्रने महाराज मेघरथकी सम्मतिसे बालकका नाम सुमति रक्खा । ॥ उत्सव समाप्त कर देव लोग अपने अपने घर चले गये। ___ बालक सुमति नाथ दोयजके चन्द्रमाकी तरह धीरे धीरे बढ़ता गया। वह चाल-चन्द्रज्यों ज्यों पढ़ना जाता था त्यों त्यों अपनी कलाओं से माता पिताके हर्ष सागरको बढ़ाता जाता था। भगवान् सुमतिनाथ, अभिनन्दन स्वामीके बाद नौ लाख करोड़ सागर बीत जाने पर हुए थे। उनकी आयु गलीस लाख पूर्व की थी जो उसो अन्तराल में शामिल है। शरीर की ऊंचाई तीन सौ धनुष और कान्ति तपे तपाये हुए स्वर्णकी तरह थी। उनका शरीर बहुत ही सुन्दर था-उनके अङ्ग प्रत्यगासे लावण्य फूट फूट कर निकल रहा था। धीरे धीरे जव उनके कुमार कालके दश लाख पूर्व व्यतीत हो गये तय महाराज मेघरथ उन्हें राज्य भार सौंप कर दीक्षित हो गये। भगवान् सुमतिनाथने राज्य पाकर उसे इतना व्यवस्थित बनाया था कि जिससे उनका कोई भी शत्र नहीं रहाथा। समस्त राजा लोग उनकी आज्ञाओं को मालाओंकी तरह मस्तक पर धारण करते थे। उनके राज्यमें हिंसा, झूठ, चोरी व्यभिचार आदि पाप देखनेको न मिलते थे। उन्हें हमेशा प्रजाके हितो का ख्याल रहता था इसलिये वे कभी ऐसे नियम नहीं बनाते थे जिनसे कि
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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