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________________ १०२ * चोवीस तीर्थकर पुराण * mami % 3D MLAAMAMADIRame एक दिन कारण पाकर उसका चित्त विषय वासनाओंसे हट गया जिससे वह अपने धनपाल नामक पुत्रको राज्य देकर विमल वाहन गुरुके पास दोक्षित हो गया। अब मुनिराज महावलके पास रञ्च मात्र भी परिग्रह नहीं रहा था। वे शरदी, गर्मी, वर्षा, क्षुधा, तृपा आदिके दुःख समता भावोंसे सहने लगे। संसार और शरीरके स्वरूपा विचार कर निरन्तर सवेग और वैराग्य गुणकी वृद्धि करने लगे । आचार्य विमल वाहनके पास रहकर उन्होंने ग्यारह अङ्गों का अध्ययन किया तथा दर्शन विशुद्धि आदि सोलह भावनाओंका विशुद्ध हृदयसे चिन्तवन किया जिससे उन्हें तीर्थकर नामक महापुराय प्रकृतिका बन्ध हो गया। आयुके अन्तमें वे समाधि पूर्वक शरीर छोड़कर विजय नामके पहले अनुत्तरमें महा ऋद्धिधारी अहमिन्द्र हुए। वहाँ उनकी तंतीस सागर प्रमाण आयु थी, एक हाथ बरावर सफेद शरीर था, वे तेतीस हजार वर्ष बाद मानसिक आहार लेते और तेतीस पक्षमें एक बार श्वासोच्छास लेते थे। वहां वे इच्छा मात्रसे प्राप्त हुई उत्तम द्रव्योंसे जिनेन्द्र देवकी अर्चा करते और स्वेच्छा से मिले हुए देवोके साथ तत्व चर्चा करके मन बहलाते थे। यही अहमिन्द्र आगे चल कर भगवान अभिनन्दननाथ होंगे। - वर्तमान परिचय जम्बू द्वीपके भरतक्षेत्रमें अयोध्या नामकी नगरी है जो विश्ववन्धु तीर्थकरोंके जन्मसे महापवित्र है। जिस समयकी यह वार्ता है उस समय वहाँ स्वयम्बर राजा राज्य करते हैं उनकी महारानीका नाम सिद्धार्थी था। स्वयंबर महाराज वीर लक्षमीके स्वयंवर पति थे। वे बहुत ही विद्वान और पराक्रमी राजा थे। कठिनसे कठिन कायौंको वे अपनी बुद्धि बलसे अनायास ही कर डालते थे, जिससे देखने वालोंको दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती थी। राज दम्पति तरह तरहके सुख भोगते हुए दिन बिताते थे। अपर जिस अहमिन्द्रका कथन कर आये हैं उसकी आयु जय विजय विमानमें छह माहकी वाकी रह गई तबसे राजा स्वयंवरके घरके आँगनमें -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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