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________________ * चौबीस तीथक्कर पुराण २४३ भगवान् महावीर दिढ कर्माचल दलन पवि, भवि सरोज रविराय । कंचन छवि कर जोर कवि, नमत वीर जिनपाय ॥ -भूधर दास [१] पूर्वभव वर्णन सब द्वीपोंमें शिर मौर जम्बू द्वीपके विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके उत्तर तट पर एक पुष्कलावती देश है उसमें अपनी स्वाभाविक शोभासे स्वर्गपुरीको जीतनेवाली पुण्डरीकिणी नगरी है । उसके मधु नामके घनमें किसी समय पुरुरवा नामका भीलोंका राजा रहता था। वह बड़ा ही दुष्ट था-भोले जीवोंको मारते हुए उसे कभी भी दया नहीं आती थी। पुरुरवाकी स्त्रीका नाम कालिका था। दोनों स्त्री-पुरुषों में काफी प्रेम था। किसी एक दिन रास्ता भूल. कर सागरसेन नामके मुनिराज उस वनमें इधर उधर फिर रहे थे। उन्हें देखकर पुरुरवा हरिण समझकर मारनेके लिये तैयार हो गया परन्तु उसकी स्त्री कालिकाने उसे उसी समय रोक दिया और कहा कि ये वनके अधिष्ठाता देव हैं, हरिण नहीं हैं, इन्हें मारनेसे सङ्कट में पड़ जाओगे। स्त्रीके कहनेसे प्रशान्त चित्त होकर वह मुनिराज सागरसेनके पास पहुंचा और नमस्कार कर उन्हींके पास बैठ गया। मुनिराजने उसे मीठे और सरल शब्दोंमें उपदेश दिया जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने मुनिराजके कहनेसे जीवनभरके लिये मद्य, मांस और मधुका खाना छोड़ दिया। रास्ता मिलनेपर मुनिराज अपने वांछित स्थानकी ओर चले गये और प्रसन्न चित्त पुरुरवा अपने घरको गया । वहां वह निर्दोष रूपसे अपने ब्रतका पालन करता रहा और आयु के अन्तमें शान्त परिणामोंसे मरकर सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वहां उसकी आयु एक सागर की थी। स्वर्गके सुख भोगकर जम्बूद्वीप-भरत क्षेत्रकी अयोध्या नगरीके राजा भरत चक्रवर्तीकी अनन्तमति नामक रानीसे मरीचि नामका पुत्र हुआ। जब वह पैदा हुआ था उस समय भगवान् बृषभदेवगृहस्थ
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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