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________________ २३८ * चौबीस तीर्थकर पुराण है । उसमें काश्यप गोत्रीयं राजा विश्वसेन राज्य करते थे। उनकी पटरानीका नाम ब्रह्मा देवी था। दोनों राज दम्पति इन्द्र इन्द्राणीकी तरह मनोहर सुख भोगते हुए आनन्दसे समय बिताते थे। ऊपर जिस इन्द्रका कथन कर आये हैं वहांपर जब उसकी आयु केवल छह माहकी बाकी रह गई तबसे राजा विश्वसेनके घरपर देवोंने रत्नोंकी वर्षा करनी शुरू कर दी। और अनेक देवियां आकर महारानी ब्रह्मादेवीकी सेवा करने लगी जिससे उन्हें निश्चय हो गया कि यहां किसी महापुरुष तीर्थंकरका जन्म होने वाला है। वैसाख कृष्ण द्वितियाके दिन विशाखा नक्षत्रमें रात्रिके पिछले पहरमें रानीने सुर कुजर आदि सोलह स्वप्न देखे और स्वप्न देखनेके बाद ही मुंहमें प्रवेश करते हुए एक मत्त हाथीको देखा । उसी समय मरुभूमिके जीव इन्द्रने स्वर्ग बसुन्धरासे सम्बन्ध तोड़कर उनके गर्भमें प्रवेश किया । सवेरा होते ही रानीने नहा धोकर प्राणनाथसे स्वप्नोंका फल पूछा तब उन्होंने हंसते हुए कहा कि आज तुम्हारे गर्भमें तेईसवें तीर्थकरने अवतार लिया है। नौ माह बाद उनका जन्म होगा। यह रत्नोंकी वर्षा, देवकुमारियोंकी सेवा और स्वप्नोंका देखना उन्हींका माहात्म्य प्रभाव प्रकट कर रहे हैं। पतिदेवके वचन सुनकर ब्रह्मा देवीको इतना अधिक हर्ष हुआ कि मारे आनन्दके उसके सारे शरीरमें रोमांच निकल आये । उसी समय देवोंने आकर राज दम्पतीका खूब सत्कार किया, स्तुति की, और स्वर्गसे साथमें लाये हुए वस्त्र-आभूषण प्रदान किये । नौ माह बाद उसने पौष कृष्ण एकादशीके दिन अनिल योगमें पुत्र रत्नको उत्पन्न किया । पुत्रके उत्पन्न होते ही सब ओर आनन्द ही आनन्द छा गया। उसी समय सौधर्म इन्द्र आदि देवोंने मेरु पर्वतपर ले जाकर उनका जन्माभिषेक किया और भगवान पार्श्वनाथ नाम रक्खा । वहांसे वापिस आकर इन्द्रने उन्हें उनकी माताके लिये सौंप दिया और भक्तिसे गद्गद् हो ताण्डव नृत्य आदिका प्रदर्शन कर जन्म कल्याणकका महोत्सव किया । उत्सव समाप्त होनेपर देव लोग अपने अपने स्थानोंपर चले गये। राज परिवारमें वालक पार्श्वनाथका योग्य रीतिसे लालन-पालन हुआ। भगवान नेमिनाथके मोक्ष जानेके बाद तिरासी हजार सात सौ पचास वर्ष बीत
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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