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________________ २२८ * चौथीम तीर पुराण * - प्रत्यंचा चढ़ाई फिर दिशाओंको गुञ्जादेनेवाला शंख बजाया। श्री कृष्ण कुछ राज्य सन्वन्धी कार्याके कारण इन सबसे पहले ही नगरी में लौट आये थे। जिस समय नेमिनाथने धनुष चढ़ाकर शंख बजाया था उस समय वे कुसुमचित्रा नामक सभामें बैठे हुये कुछ आवश्यक कार्य देख रहे थे। ज्यों ही वहां उनके कानमें शंखकी विशाल आवाज पहुंची त्यों ही वे चकित होते हुये आयुधशालाको दौड़े गये। वहां उन्होंने भगवान् नेमिनाथको क्रोधयुक्त देखकर मीठं शब्दों में शान्त किया और पासमें किसी पुरुषसे उनके क्रोधका कारण पूछा । उसने सत्यभामा आदिके साथ जलक्रीड़ा सम्बन्धी मय समाचार कह सुनाये और बादमें सत्यभामाके मर्मभेदी वचन भी कह दिये । सुनकर श्रीकृष्ण कुछ मुस्कुराये। उन्होंने सत्यभामाके अभिमानपर यहुन कुछ रोष प्रकट किया और अपने गुरुजन समुद्रविजय, वासुदेव आदिके सामने नेमिनाथके विवाहका प्रस्ताव रक्खा। जघ समुद्रविजय आदिने हर्ष सहित अपनी अपनी सम्मति दे दी। तब श्रीकृष्णने भूनागढ़ जाकर वहांके उग्रवंशीगजा उग्रसेनसे उनकी जयावती रानीसे उत्पन्न हुई गजमती कन्याकी कुमार नेमिनाथके लिये मंगनी की। राजा उग्रसेनने कृष्णचन्दके पचन सहर्ष स्वीकार कर लिये। जिससे दोनों ओर विवाहकी तैयारियां होने लगी। इन्हीं दिनों में श्रीकृष्णके हृदयमें पुनः शंका पैदा हुई कि ये नेमिनाथ बहुत ही बलवान् हैं। उस दिन इनसे मुझे हार माननी पड़ी थी और अभीअभी जिसपर मेरे सिवाय कोई चढ़नेका साहस नहीं कर सकता उस नागशय्यापर चढ़ और धनुष चढ़ाकर तो गजय ही कर दिया। अब इसमें सन्देह नहीं कि ये कुछ दिनोंके बाद मेरे राज्यपर अवश्य ही आघात पहुंचावेंगे। इस तरह लोभ पिशाचके फन्देमें पड़कर श्री कृष्णके हृदयमें उथल-पुथल मच गई। उन्होंने सोचा कि नेमिनाथ स्वभाव हीसे विरक्त पुरुप हैं-विषय-वासनाओंसे इनका मन हमेशा ही दूर रहता है । न जाने क्यों इन्होने विवाह करना स्वीकार कर लिया ? अप भी ये वैराग्यका थोडासा कारण पाकर विरक्त हो जायेंगे। इसलिये कोई ऐसा उपाय करना चाहिये जिससे ये गृह त्यागकर दिगम्बर यति बन जावें ।'...यह सोचकर कृष्णने एक षड़यंत्र रचा वह यह कि भूनागढ़के -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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