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________________ * चौबीस तर्थङ्कर पुराण * २.६ - - - - । रहे हैं। देवियोंके वचन सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए। राजाकी आज्ञा पाकर देवियां अन्तःपुर पहुंची और वहां महारानी सोमाकी सेवा करने लगी। छह माह बाद रानीने श्रावण कृष्णा द्वितीयाके दिन रात्रिके पिछले पहरमें सोलह स्वप्न देखे । उसी समय उक्त इन्द्रने प्राणत स्वर्गसे मोह छोड़कर रानी सोमाके गर्भ में प्रवेश किया, देवोंने गर्भ कल्याणकका उत्सव किया और राज दम्पतिका खूब सत्कार किया । जब धीरे धीरे गर्भके दिन पूर्ण हो गये तब रानी सोमाने वैसाख बदी दशमीके दिन श्रवण नक्षत्र में पुत्र रत्न उत्पन्न किया । देवोंने आकर उसका अभिषेक किया और मुनिसुव्रत नाम रक्खा । बालक मुनिसुव्रतका राजभवनमें योग्य रीतिसे लालन पालन हुआ। क्रम क्रम से जब उन्होंने युवावस्थामें पदार्पण किया तब पिता सुमित्र महाराजने उनका किन्हीं योग्य कुलीन कन्याओंके साथ विवाह कर दिया । भगवान् मुनिसुव्रत अनुकूल स्त्रियोंके साथ तरह तरहके कौतुक करते हुए मदनदेवकी आराधना करने लगे। श्री मल्लिनाथ तीर्थकरके मोक्ष जानेके बाद चौअन लाख वर्ष बीत जानेपर भगवान् मुनिसुव्रतनाथ हुए थे। उनकी आयु भी इसी अन्तराल में शामिल है। तीस हजार वर्षकी उनकी आयु थी, बीस धनुष ऊंचा शरीर था, और रंग मोरके गलेकी तरह नीला था। जब कुमार कालके सात हजार पांच सौ वर्ष बीत गये तब उन्हें राज्य गद्दी प्राप्त हुई। राज्य पाकर भगवान् मुनिसुव्रतनाथने प्रजाका इस तरह पालन किया था कि जिससे वह सुमित्र महाराजका स्मरण बहुत समय तक नहीं रख सकी थी। इस तरह आनन्दपूर्वक राज्य करते हुए जब उन्हें पंद्रह हजार वर्ष बीत गये तब एक दिन मेघोंकी गर्जना सुननेसे उनके प्रधान हाथी ने खाना पीना छोड़ दिया। जब लोगोंने मुनिसुव्रत स्वामीसे उसका कारण पूछा तब वे अवधि ज्ञानसे सोचकर कहने लगे -"कि, यह हाथी इससे पहले भवमें तालपुर नगरका स्वामी नरपति नामका राजा था। उसे अपने कुल, धन, ऐश्वर्य आदिका बहुत ही अभिमान था। उसने एक बार पान अपात्रका कुछ भी विचार न कर किमिच्छक दान दिया था, जिससे मरकर यह हाथी हुआ है। इस समय इसे अपने अज्ञानका कुछ भी पता नहीं है न बड़ी भारी राज्य संपदा पERESERanwu DROID २७
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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