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________________ २०३ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * HD - यह कहकर रुके ही थे कि इतनेमें आकाश मार्गसे असंख्य देव जय जय शब्द करते हुये उनके पास आ पहुँचे । देवोंने भक्ति पूर्वक राज दम्पतिको नमस्कार किया और अनेक सुन्दर शब्दोंमें उनकी स्तुति की। साथमें लाये हुये दिव्य वस्त्राभूषणोंसे उनकी पूजा की तथा भगवान् मल्लिनाथके गर्भावतारका समाचार प्रकट कर अनेक उत्सव किये । देवोंके चले जानेपर भी अनेक देवियां महा रानी प्रजावतीकी सेवा-शुश्रूषा करती रही थीं। जिससे उसे गर्भ सम्वन्धी किसी भी कष्टका सामना नहीं करना पड़ा था। जय धीरे धीरे गर्भके नौ माह बीत गये तब उसने मार्गशीर्ष सुदी एकादशीके दिन अश्विनी नक्षत्र में उस पुत्र रत्नको उत्पन्न किया, जो पूर्ण चन्द्र की तरह चमकता था, जिसके सब अवयव अलग अलग विभक्त थे और जो जन्मसे ही मति श्रुत तथा अवधिज्ञानसे विभूषित था। उसी समय इन्द्र दि देवोंने बालकको मेरु शिखरपर ले जाकर वहां क्षीर सागरके जलसे उसका कलशाभिषेक किया। बादमें घर लाकर माताकी गोदमें बैठा दिया और तांडव नृत्य आदि अनेक उत्सवोंसे उपस्थित जनताको आनन्दित किया। जन्मका उत्सव समाप्त कर देव लोग अपनी अपनी जगहपर चले गये। वहां राज भवन में बालक मल्लिनाथका उचित रूपसे लालन पालन होने लगा। क्रम क्रमसे पाल्य और कौमार अवस्थाको व्यतीत कर जब उन्होंने युवावस्थामें पदार्पण किया तब उनके शरीरकी आभा बहुत ही विचित्र हो गई। थी। उस समय उनका सुन्दर सुडौल शरीर देखकर हरएककी आंखें संतृप्त हो जातीथीं । अठारहवें तीर्थंकर भगवान् अहनाथके बाद एक हजार करोड़ वर्ष पीत , जानेपर भगवान मल्लिनाथ हुये थे। उनकी आयु भी इसी अन्तराल में शामिल है । पञ्चपञ्चाशत्-पचपन हजार वर्षकी उनकी आयु थी। पच्चीस धनुष ऊंचा': शरीर था, और सुवर्णके सनान शरीरकी कान्ति थी। जब भगवान मल्लिनाथकी आयु सौ वर्षकी हो गई तब उनके पिता महाराज कुम्भने उनके विवाह की तैयारी की। मल्लिनाथके विवाहोत्सवके लिये पुरवासियोंने मिथिलापुरीको खूब ही सजाया। अपने द्वारोंपर मणियोंकी वन्दन मालाएं बांधी। मकानोंकी शिखरोंपर पताका फहराई। मार्गमें सुगन्धित जल सींचकर फूल वरसाये। - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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