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________________ * चौबोस तोपर पुराण. १७७ तरह भंगुर हैं-नाशशील हैं । इसलिये उन्हें छोड़कर अविनाशी मोक्ष पद प्राप्त करना चाहिए ।' उसी समय लौकान्तिक देव आये और उनने भी उनके विचारोंका समर्थन किया। जिससे उनका वैराग्य और भी अधिक पढ़ गया। निदान, वे सुधर्म नामक ज्येष्ठ पुत्रके लिये राज्य देकर देव निर्मित नागस्ता-पालकीपर सवार हो शाल वनमें पहुंचे और वहां माघ शुक्ला त्रयोदशीके दिन पुष्प नक्षत्र में शामके समय एक हजार राजाओके साथ दीक्षित हो गये। उन्हें दीक्षित होते ही मनः पर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। देव लोग दीक्षा कल्याणकका उत्सव मनाकर अपने अपने स्थानों पर वापिस चले गये। 1 - मुनिराज धर्मनाथ तीन दिनके पाद आहार लेनेके लिये पाटलिपुत्र पटना || गये। वहां धन्यसेन राजाने उन्हें भक्तिपूर्वक आहार दिया। पात्रदानसे प्रभावित होकर देवोंने धन्यसेनके घरगर पंचाश्चर्य प्रकट किये। धर्मनाथ आहार ले. कर घनमें लौट आये और आत्मध्यानमें अविचल हो गये । इस तरह एक वर्ष तक तपश्चरण करते हुए उन्होंने कई नगरोंमें बिहार किया। वे दीक्षा लेनेके बाद मौन पूर्वक रहते थे। एक वर्षकी छद्मस्थ अवस्था बीत जानेपर उन्हें उसी शाल वनमें सप्तच्छद बृक्षके नीचे पौष शुक्ला पौर्णमासीके दिन केवलज्ञान प्राप्त हो गया। उसी समय देवोंने आकर कैवल्य प्राप्तिका उत्सव किया । इन्द्रकी आज्ञा पाकर कुवेरने दिव्यसभा-समवसरणकी रचना की उसके मध्यमें सिंहासन पर विराजमान होकर उन्होंने अपना मौन भंग किया। दिव्य धवनिके द्वारा जीव अजीव आदि तत्वोंका व्याख्यान किया और संसारके दुःखोंका वर्णन किया जिसे सुनकर अनेक नरं नारियोंने मुनि आर्थिकाओं और श्रावक श्राविकाओंके व्रत धारण किये थे। प्रथम उपदेशके बाद इन्द्रने विहार करनेकी प्रार्थना की। तब उन्होंने प्रायः समस्त आर्य क्षेत्रोंमें बिहार कर जैनधर्मका खूब प्रचार किया। उनके समवसरणमें अरिष्टसेन आदि ४३ गणधर थे, १११ अङ्ग और' १४ पूर्वोके जानकार थे, चालीस हजार सात सौ शिक्षक थे, तीन हजार छह सौ अवधिज्ञानी'थे, चार हजार पांच सौ केवली थे, सात हजार विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, चार हजार पांचसौ मनः पर्यय ग्यानी थे, ओर. दो हजार आठ सौ षादी थे, इस तरह सब मिलाकर चौंसठ हजार - ।
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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