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________________ ५ चौबीस तीर्थकर पुराण * १६५ भव्य प्राणियोंका संसार-सागरसे समुद्धार किया। जगह-जगह स्याद्वाद वाणीके द्वारा जीव जीवादि तत्वोंका व्याख्यान किया। उनके उपदेशसे प्रभावित होकर अनेक नर नारियोंने देशव्रत और महाव्रत ग्रहण किये थे। ____ आचार्य गुणभद्रने लिग्वा है कि उनके समवसरणमें 'मन्दर' आदि पचपन गणधर थे, ग्यारह सौ द्वादशांगके वेत्ता थे, छत्तीस हजार पांच सौ तीस शिक्षक थे, चार हजार आठ सौ अवधिज्ञानी थे, पांच हजार पांच सौ केवली थे। नौ हजार विक्रिया ऋद्धिके धारण करने वाले थे, पांच हजार पांच सौ मनः पर्यय ज्ञानी थे और तीन हजार छह सौ बादी थे। इस तरह सब मिला कर अड़सठ हजार मुनिराज थे। 'पा' आदि एक लाख तीन हजार आर्यिकाएं थीं, दो लाख श्रावक, चार लाख श्राविकाएं, असंख्यात देव देवियां और संख्यात तिर्यच थे। जप आयुका एक माह बाकी रह गया तव वे सम्मेद शिखरगर आ विरा जमान हुए। वहां उन्होंने योग निरोधकर आषाढ़ कृष्ण अष्टमीके दिन शुक्ल ध्यानके द्वारा अवशिष्ट अघातिया कर्मीका संहार किया और अपने शुभ समागमसे मुक्ति वल्लभाको सन्तुष्ट किया। उसी समय देवोंने आकर उनके निर्वाण क्षेत्रकी पूजा की। भगवान अनन्तनाथ त्वमीदृशस्तादृश इत्ययं मम __ प्रलापलेशोऽल्पमते महामुने । अशेष माहात्म्य मनीर यन्नपि शिवाय संस्पर्श इवामृताम्बुधः ॥ -आचर्य समन्तभद्र हे महामुने ! आप ऐसे हो, वैसे हो, मुझ अल्पमतिका यह प्रलाप, जब
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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