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________________ १५२ चौबीस तीथतर पुराण - - %3 - प्रभका जीव अच्युन स्वर्गके पुष्पोत्तर नामक विमानमें इन्द्र हुआ। वहां उसकी आयु बाईम सागरकी थी, शरीरकी ऊंचाई तीन हाथकी थी, लेश्या शुक्ल थी और जन्मसे ही अवधिजान था। वहांपर अनेक सुन्दरी देवियोंके साथ वाईस सागर तक तरह तरहके सुख भोगता रहा । यही इन्द्र आगेके भवमें भगवान् श्रेयान्सनाथ होगा। वर्तमान परिचय जब वापर उसकी आयु सिर्फ छह माहकी शेष रह गई और वह पृथ्वी पर जन्म लेनेके लिये सम्मुख हुआ। उस समय इसी जम्बू द्वीपके भरत क्षेत्र के सिंहपुर नगरमें इक्ष्वाकु वंशीय विष्णु नासके राजा राज्य करते थे। उनकी महादेवीका नाम सुनन्दा था। ऊपर कहे हुए इन्द्रने ज्येष्ठ कृष्ण षष्टीके दिन श्रवण नक्षत्र में रात्रिके अन्तिम भागमें स्वर्ग भूमिको छोड़कर सुनन्दा महारानीके गर्भ में प्रवेश किया। उस समय सुनन्दाने हाथी बैल आदि सोलह स्वप्न देखे थे। सवेरा होते ही उसने प्राणनाथ विष्णु महाराजसे स्वप्नोंका फल सुना जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुई। उसी समय देवोंने आकर राज दम्पतीका खूब सत्कार किया और गर्भ कल्याणकका उत्सव मनाया। वह गर्भस्थ बालकका ही प्रभाव था जो उसके गर्भ में आनेके छह माह पहलेसे लेकर पन्द्रह माहतक महाराज विष्णुके घरपर प्रति दिन रत्नोंकी वर्षा होती रही और देवकुमारियां महारानी सुनन्दाकी शुश्रूषा करती रहीं। धीरे-धीरे गर्भका समय व्यतीत होनेपर फाल्गुन कृष्ण एकादशीके दिन श्रवण नक्षत्र में सुनन्दा देवीने पुत्र रत्न उत्पन्न किया। उस समय अनेक शुभ शकुन हुए थे। देवोंने मेरु पर्वतपर ले जाकर बालकका कलशाभिषेक किया। फिर सिंहपुर वापिस आकर कई तरहसे जन्म महोत्सव मनाया। इन्द्रने महाराज विष्णुकी सलाहसे बालकका श्रेयान्स नाम रखा । जो ठीक था, क्योंकि वह आगे चलकर समस्त प्रजाको श्रेयोमार्ग-मोक्ष मार्गमें प्रवृत्त करेगा । उत्सव समाप्त कर देव लोग अपनी अपनी जगहपर वापिस चले गये। पर जाते समय इन्द्र ऐसे अनेक देव कुमारोंको वहींपर छोड़ गया था जो अपनी D । RONE
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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