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________________ १५० ___ * चोयीस तीर्थकर पुराण * - - - - मोक्ष महलको प्राप्त हुए । देवोंने आकर निर्वाण भूमिकी पूजा की और उनके शरीरकी भस्म अपने शरीरमें लगाकर आनन्दसे गाते, नाचते हुए अपने अपने स्थानोंपर चले गये। इनके तीर्थंके अन्त समयमें काल दोपसे वक्ता श्रोता और धर्मात्मा लोगों के अभाव होनेसे समीचीन धर्म लुप्तप्राय हो गया था। - ma भगवान श्रेयान्सनाथ निर्धूय यस्य निज जन्मनि सत्यमस्त, मान्ध्यं चराचर मशेष मवेक्षमाणम् । ज्ञानप्रतीप विरहान्निज रूप संस्थं श्रेयान जिनः सदिशता दशिवच्युर्तिवः॥ -आचार्य गुणभद्र "उत्पन्न होते ही समस्त अज्ञान अन्धकारको नष्ट करके सब चर अचर पदार्थोको देखने वाला जिनका उत्तम ज्ञान बाधक कारणोंका अभाव होनेसे अपने स्वरूपमें स्थिर हो गया था वे श्रीश्रेयान्स जिनेन्द्र तुम सबके अमंगलकी हानि करें।" [१] पूर्वभव वर्णन पुष्कर द्वीपके पूर्वमेरुसे पूर्व दिशाकी ओर विदेह क्षेत्रमें एक सुकच्छ नामका देश है। उसमें सीता नदीके उत्तर तट पर एक क्षेमपुर नगर था । क्षेमपुर नगरमें रहने वाले मनुष्योंको हमेशा क्षेम मङ्गल प्राप्त होते रहते थे इसलिये उसका क्षेमपुर नाम बिलकुल सार्थक था। किसी समय उसमें नलिनप्रभ नामका राजा राज्य करता था। उसका शरीर बहुत ही सुन्दर था । उसने अनुपम बाहुबलसे समस्त क्षत्रियोंको जीत कर अपना राज्य निष्कण्टक बना लिया था। वह उत्साह, मन्त्र और प्रभाव इन तीन शक्तियोंसे तथा इनसे - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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