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________________ १२८ * चौबीस तीथर पुराण * - कुछ दिनों याद रानी श्रीकान्ताने रात्रिके पिछले भागमें हाथी, सिंह. चन्द्रमा और लक्ष्मीका अभिषेक ये चार स्वप्न देखे । उसी समय उसके गर्भाधान हो गया। धीरे धीरे उसके शरोरमें गर्भके चिन्ह प्रकट हो गये, शरीर पाण्डु वर्ण हो गया, आंखोंमें कुछ हरापन दीखने लगा, स्नन स्तूप और कृष्ण मुख हो गये । उदर भारी हो गया और जिम्हाई आने लगी। प्रियतमाके शरीरमें गर्भके चिन्ह प्रकट हुए देखकर राजा श्रीषण बहुत ही हर्षित होता था नव माह बाद उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। राजाने पुत्रकी उत्पत्तिका खूब उत्सव किया --याचकोंको मनचाहा दान दिया, जिन पूजन आदि पुण्य कर्म कराये । ढलतो अवस्थामें पुत्र पाकर श्रीकान्ताको कितना आनन्द हुआ होगा यह तुच्छ लेखनीसे नहीं लिखा जा सकता। राजाने बन्धु बान्धवोंकी सलाहसे पुत्रका नाम श्रीवर्मा रक्खा । श्रीवर्मा धीरे धीरे बढ़ने लगा। जैसे जैसे उसकी अवस्था बढ़ती जाती थी वैसे वैसे ही उसके गुणोंका विकाश होता जाता था ज वकुमार राज्य कार्य संभालनेके योग्य हो गया तब राजा उसपर राज्य का भार छोड़कर अभिलाषित भोग भोगने लगा। एक दिन वहाके शिवंकर नामक उगवनमें श्रीप्रभ नामक मुनिराज आये । बनमालोने राजाके लिये मुनि आगमन का समाचार सुनाया। राजा श्रीषेण भी हर्षित चित्त होकर मुनि चन्दनाके लिये गया। वहां मुनिराजके मुहसे धर्मका स्वरूप और संसारका दुःख सुनकर उसके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हो गया जिससे उसने श्रीवर्माको राज्य देकर शीघ्र ही जिन दीक्षा धारण कर ली । श्रीवर्मा राज्य पाकर बहुत प्रसन्न नहीं हुआ क्योंकि वह हमेशा उदासीन रहता था। उसकी यही इच्छा बनी रहती थी कि मैं कब साधुवृत्ति धारण करूं। पर परिस्थिति देवकर उसे राज्य स्वीकार करना पड़ा था। श्रीवर्मा बहुत ही चतुर पुरुष था। उसने जिस तरह वाद्य शत्रुओंको जीता था उसी तरह काम, क्रोध आदि अन्तरङ्ग शत्रुओं को भी जीत लिया था। एक दिन श्रीवो परिवारके कुछ लोगोंके साथ मकानकी छत पर बैठकर प्रकृतिकी अनूठी शोभा देख रहा था कि इतनेमें आकाशसे उल्कापात हुआ। उसे देखकर उसका चित्त सहसा विरक्त हो गया। उसने उल्काकी तरह -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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