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________________ (६६) . . . | मावा ॥ . अब पांचमां पदार्थ श्राश्रव द्वार कहते हैं-जीवके श्राश्रव द्वार करके कर्म आते हैं कर्म और आश्रय अलग २ हैं अर्थात् श्राश्रय धारतो जीव है और द्वारों में होके आने वाले कर्म अजीप है। जीवके भले और बुरे परिणाम है सोही आश्रव द्वार है भले परि शाम से पुन्य और बुरे परिणामों से पाप लगता है, पुण्य पाप का करने वाला जीव है जिसहीका नाम पाथव है,परन्तु कई मिध्याती पाश्रवको अजीव कहते हैं सो जीव अजीव के अजाग है वे मित्थ्यात्व मयी दीवारकी बुनियाद को दृढ करते हैं किन्तु आश्रव.द्वार कदापि जीव नहीं है निश्चै ही जीव है श्रीवीर प्र. भूने अंगोपांग में जगहें जगहें कहा है सो प्रथम तो मानव द्वार को यथा-तथ्य औलसाते हैं, यथा ॥ ढाल ॥ ॥ विनयरा भाव सुंण २ गुंजे एदेशी।। गंणा अंग सूत्र मझार । कह्या छै पांच प्रा. 'श्रवद्धार ॥ ते द्वारः छै महा विकराल । त्यां में पाप आवै दग चाल ॥ १॥ मिथ्यात अव्रत में कषाय । प्रमाद जोग छै हाय ।। ये पांचूही श्राश्रवद्धार छै ताम । ये निश्चय ही जीव तणां नाम ॥२॥ ऊधो श्रद्धैते श्राश्रय मित्थ्यात । ऊधो · श्रद्धे ते जीव साक्षात ।। तिण श्राश्रव नों रूंधण हार । ते समकित संवर द्वार ।। ३ ।। श्रत्याग भाव अव्रत छै ताम । जीवतणां मांग परिणाम ॥
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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