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________________ पा॥३१॥ क्रोधकरै तिणसूंजीव क्रोधी कहायो, उदय पाई ते कोपरी प्रकृति कहाणी । इणारीतें मान मायाने लोभ, याने पिण लीज्यो. इणरीत पिछाणी ।। पा॥ ३२ ॥ जीवहसे हांस्यरी प्रकृतिसँ रति परति प्रकृतिसूं शति अरति वधारै । भय प्रकृति उदयजीव भय पामै, सोग प्रकृति उदय जीव ने सोग श्रावै ॥ पा ॥ ३३ ॥ दुगंश श्राचे दुगंछारी प्रकृतिस, स्त्रीवेद उदयसें बधै विकार, तिणने पूरुपनी अभिलाषा होवे, पछ होतां २ हुवै बहोत बिगार।पा॥३४॥ पुरुष वेदोदय स्त्रीनी अभिलाषा, 'नपुंसक बेदोदय दोरी चहाय । कर्म उदयसें बेदी नाम कहयो जिन, कर्माने पण बेद कहया जिन. 'राय ॥ पा ॥ ३५॥ मित्थ्यात उदय जीव होवै मिथ्याती, चारित मोह उदय जीव होथैः कुकर्मी इत्यादि मांग २ जीवरा नाम, अनारजने बलि हिन्सा धर्मी ॥पा॥३६॥ चौथो घनघाती अंत राय कर्म छै, तिणरी प्रकृति पांच कही जिन ताम - ये पांच प्रकृति पुदगल चो स्पर्शी, त्यां प्रकृतिरा? जुवा २ नाम ॥4॥३७॥ दाना अंतरायकै दानरै पाडी, लांभा अंतरायसु बस्तु लाभः सकै नाहीं।
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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