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________________ (.७६) ताम । तिणसे दुःख उपजै जीवनें. त्यांरीपापकर्म छै नाम ॥ २॥ जीव खोटा २. कर्तव्य कर जब पुदगल लागे ताम । ते उदय हुां दुःख उपजे, ते श्राप कमाया काम ॥ ३॥ पाप उदयथा दुःख हुबै जब कोई मत करिज्यो रोस । किया जिसा फल भोगवै, पुदगलनों नहीं दोस ॥४॥ पापकर्म ने करणी पापरी, दोनू जुदी २ छै ताम । ते यथा तथ्य प्रगट करूं, सुणिज्यो राखि चित ठाम ॥शा ॥ भावार्थ ॥ नष पदायों में पाप पदार्थ चौथा है सो पाडवा कहिए अत्यंत खराव है, जीव को भयकारी और दुःखोका दायक है, पाप है सो पुद्गल प्रग्य हैं जीष उन्हे अशुद्ध कर्तव्य करिके लगाता है उदय मानेसे अनेक प्रकार से दुःखी होताहै तो पाप मयी पुद्गलों का दोष नहीं समझना चाहिए क्यों के पापका कमाया हुमा काम है जैसा किया वैसा भोगनाहीं पड़ेगा हिन्सा झूट चोरी आदि कर्तव्यों से अशुभ पुद्गल जीष के लगते हैं उन पुद्गलोका नाम पाप कर्म है और ज्यों कर्तव्य किया वो पापको करणी है जीषके परिणामहै इसलिये पाप और पापकी करणी अलग २ है जिसे यथार्थ प्रगट करिके कहते हैं सो एकाग्रचित करिके सुनो। . ॥ढालं॥ ॥ या अनुकम्पाजिन अाज्ञामें एदेसीमें। घणघातिया च्यार कर्म जिन भाख्या। ते श्राम पडल बादल जिमजाणं ॥ त्यां निजगुन जीवत:
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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