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________________ (७० दुख देनेच्यावत प्रतापना उपजाने से असाता वेदनी कर्मबंधता है। तथा इस ही उद्देसे में कहा है अट्ठारद पाप सेने से कर कस बदनी और न सेन से अकरकस बदनी बंधता है । कालोदाई मुनी श्री भगवान से प्रश्न किया है कल्याण कारी और अकल्याण कारी कर्म जीध कैसें बांधता है तय भगवन्त ने उत्तर फरमाया है.कि.अठारह पापस्थानक सेने से शकल्याणकारी कर्मः और न सेने से कल्याणकारी कर्म बंधता है.श्री भगवती सूत्र में अधिकार है, कल्याणकारी कर्म. पुन्य है और कल्याणकारी कर्म पाप है। आयुष्य कर्म च्यार प्रकार का है-नारकी का, तिर्यः चका, मनुष्य का, देवता का, जिस में नारकी तिर्यच का आयुष्य सो पाप है और मनुष्य देवता का श्रायुष्य पुन्य है सो च्यारी प्रा कार का आयुष्यं कर्म कैसें बांधता है घो अधिकार श्री भगवती सूत्र में कहा है सो कहते हैं:१-हा आरंभसे, महापरिग्रहसे, पंचेन्द्री की घातकरने से, मद्य • मांस सोगने लें, नारफी का आयुष्य बंधता है। २-मायाचार से, गूढ माया कपट करने से, झूठ बोलने से,अस त्य तोलनेलें या असत्यनांपर्ने से, तिर्यचका प्रायुध्य पंधता है।' ३-भद्रिक प्राकृति से, सुयनीत पण से, जीवों की दयासें अम. सर भाव से, मनुष्य का श्रायुप्य बंधता है। ४-सराग संयम पालन से, श्रावक पणां पालने से, बालं तपस्या . करने से, अकाम निरजरा लें, देवता का आयुष्याचंधता है। . .तथा कहा है काया का शर्ल पणे-से भाषा का शर्ल पणे से, जैसा करै वैसा कहने वाला ऐसा सत्यवादी पणे से, शुभनाम कमोपार्जन होता है, और इन्हीं योलों को उलटे करने से अशुभ नाम कर्मोपार्जन करता है। " . जाति का, कुल का, रूपका, तप का, लाभ का, सूत्र का, छ.. कुंराईका, इन आठों का मंद याने अभिमान करने से नीच गोत्र. कर्म बंधता है और न करने से ऊंच गौत्र कर्म बंधता है। तात्पर्य संह कि भानावरगी दारेशना परणी मोहनीय और अंतराय यह .
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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