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________________ लाये हुए जहर व्यापितको नीमके पान मीठे लंग वसेंही जीवको क्लर्मों के उदय से पुन्य के पुद्गलिक सुख प्यारे लगते हैं, मगरज्ञानी पुरुष तो पुन्य और पाप इन दोन ही को बेड़ी जानते हैं पुन्य प्राप दोनू ही के क्षय होने से असली सुख जो आत्मिक हैं सो प्राप्त होते हैं इसलिए पुन्य की बान्च्छा नहीं कराचाहिए पुण्यकी वान्छा करणे से एकान्ति पाप लगता है क्यों के ज्यो पुन्यकी वान्छा करी वोह काम भोग वान्छे, काम भोगों फी वान्छा से नर्क निगोदादि दुःख मिलते हैं इसलिए भव्य जनों को विचारणा चा• . हिए कि ये पुन्य के सुख असास्वते और असार है इन में कुछ कः रामात नहीं है, ये पुन्य के सुख भी निर्वध करणी करणे से मिलते हैं परन्तु इन सुखों को आसा से करणी नहीं करणी चाहिए, जब जीवके मन बचन काया के तीनों अथवा इन तीनों में से कोई एक जोग भला बर्तता है तथा भली लेश्या भूला अदवसायों से श्र: शुभ कर्मों की निरजरा होती है तव शुभ कर्म सहज में बंधते है जैसे गेहूं के साथ में खाखला स्वतह ही होता है वैसे निरजरा की करणी करणे लें पुन्योरिजन होता है, और ज्यो २ वस्तु पुन्योदय से मिलती है उन्हें त्यागने से अशुभ कर्मों की निरजरा होती. है जिससे जीव निर्मला होके अनुक्रमे सर्व कर्म क्षय करि के सिद्ध अवस्था प्राप्त करता है, पुन्यतो चोस्पर्शी कर्म हैं पुन्य को अधीपणे से भागने से सचिकण पापोरजन होता है। यह पुन्य पदार्थ को ओलखाने के लिए स्वामी श्री भीखनजी.ने ढाल. जोड करके कही है सम्बत् अट्ठारह सह पचपन वर्षे जेठ वुद न: वमी सोमवार को श्री नाघद्वार शहर में कही है, सो इसका भावार्थ मैंने मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार किया है इसमें जो कोई अशुद्धार्थ पाया हो उसका मुझे वारम्वार मिच्छामि दुक्कडं है, अव पुन्य किसतरहे से और किस करणी के करणे से होता है सो कहते हैं। . आपका हितेच्छु ...जौहरी गुलाबचन्द लूणीया द
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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