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________________ (५२) ४-देव अनुपूरवी अर्थात् देवगति में जानेवालाजीवको अंत सम य पाती है। ५-मनुष्य गति नाम कर्म से मनुष्य होता है। ६-मनुष्य अनुपूरवी, मनुष्य होनवाला जीवको अंत समय पाती है। ७-त्रस नाम कर्म के उदय से ये जीव त्रस होता है अर्थात्चलना हलना होता है। ८-चार नाम कर्म के उदय जीव सूक्ष्मताको छोड चादर अर्थात् नेत्रद्वारा देखने लायक शरीर पाता है। ६-प्रत्येक शुभ नाम कर्म से प्रत्येक शरीरी होता है अर्थात् येक शुभ शरीर में येकही जीव होता है। १०-पर्याप्ता शुभ नाम कर्म से जीव यथा योग आहारादि पूरण परियायी होता है। ११-शुभ नाम कर्म से अच्छा नाम पाता है। १२-सोभाग्य नाम कर्म से सौभाग्यवंत होता है। १३-सुश्वर नाम कर्मसें श्वर याने कंठ मीठे होते हैं। १४-श्रादेज नाम कर्मले श्रादेज वचनी होता है अर्थात् जिसका वचन प्रिय श्रोर प्रमाणिक होताहै। १५-जसोकीरती नाम कर्मसे अधिक यसवंत होताहै। १६-स्थिर शुभ नाम कर्मसे शरीरके अवय दृढ़होते हैं। १७-अगुरू लघुनाम कर्मसें शरीर अधिक हलका या अधिक भारी नहीं होता है। १८-प्राघात शुभनाम कर्मसे संग्रामादि में जय प्राप्त करता है। १६-उखाल शुभनाम कर्मसे स्वासोखास अच्छी तरह नैरोग्यता से लेता है। २०-आताप शुभनाम कर्मसे श्राप शीतल स्वभावी होता है और __ दूसरे उन्हें देखके तपता है अर्थात् जलता है। २१-लयात शुभनाम कर्म से शरीरकी क्रान्ति ज्योति उज्वल होती है। २२-शुभगई शुभनाम कर्मसे हंस समान शगज ससान अच्छी चाल होती है।
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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