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________________ (४४) न्तु लोनेका विनास नहीं वैसहीं पुद्गलोंकी बस्तुका विनास ले. किन पुद्गल का विनास नहीं होता है, अाठ कर्म शरीर छाया तावडा प्रभाः क्रान्ति अन्धकार उद्योत ए रूप भाव पुद्गल असा. स्वते हैं, हलका भारी खरदरा मुलायिम तथा गोल लंबा थादि संस्थान व्रत गुड आदि दसं विषय बसन भाभूपण प्रादि अनेक वस्तु हैं सो सब भाव पुद्गल जानना, सैंकड़ों हजारों भण बल जाते हैं तथा ऊपजे है सो सब भाव पुद्गलं हैं हव्यतो अग्नले बालनेसें बलता नहीं और निपजता नहीं अर्थात् पुद्गलत्वपणा है सो द्रव्य है वो सास्वता है, और अनेक वस्तु पणे परिणमें वो भाव पुद्गल प्रसास्वता है इसलिए पुद्गलको दृव्यतः सास्वता और भावतः श्रसास्वता श्री उतराध्ययन के छत्तीसमें अध्ययन में कहाहै इस में कोई शंका नहीं रखनी चाहिए, स्वामी भीखनजी कहते हैं अजीव पदार्थ को उलखानके लिए ढाल जोड़के धीजीद्वार नगरमें कही है सम्बत् अठारहलय पचपन वर्ष बैसाख बुद ५ सनीवार, यह अजीव पदार्थकी ढाल का भावार्थ मेरी तुच्छ बुद्धि प्रमाण कक्षा है ज्यो कोई अशुद्धार्थ हुश्रा: उसका मुजे वारं बार मिच्छामि दुकर्ड है। अापका हितेच्छू जोहरी गुलाबचन्द लूणियां - - - ॥अथ तृतीयपुन्यपदार्थ ॥ ॥दोहा॥ पुन्य पदार्थ तीसरो, तिणसं सुख मानै संसार.। काम भोग शब्दादिक पामैं तिण थकी, तिणनें लोक जाणे श्रीकार ॥ १ ॥ पुन्यरा सुख छै पु:
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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