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________________ १.१) ज्ञानावरणी कर्म क्षयोपसम होने से पाठ बोलों की प्राप्ती होती है मति ज्ञान १ श्चतिज्ञान २ अवधि शाम ३ मनः पर्यव : न.४ मति प्रज्ञान ५ श्रुतिश्रज्ञान ६ विभंग अशान ७ भणना याने लीखना गुणना ८ (२) दरिशना वरणी कर्म क्षयोपसम होने से पोलों की प्राप्ती होती है श्रोत्रइन्द्री १ (कान,) चक्षुइन्द्री २ (आंख,) प्राणइन्द्री ३ (नाफ,) रसइन्द्री ४ (जीभ, ) स्पर्शइन्द्री ५ (शररि,) चक्षु दरिशन ६, अचच दरिशन ७, अवधि दरिशन । ३ मोहनीय कर्म क्षयोपसम होने से पं बोला की प्राप्ती होती है सामाइक चारित्र १, छेदोस्थापनीय चारित्र २, प्रतिहार पिशुद्ध चारित्र ३, सूक्षम संपराय चारित्र ४, देशव्रत (श्रावकपः णां) ५, समदृष्टि ६, मित्यादृष्टि ७, सम मित्थ्याइष्टि । ४ अन्तराय कर्म क्षयोपलम होने से ८ वोलों की प्राप्तीहोती है दानालन्धि १, लाभालब्धि २, भोगालब्धि ३, उपभोगालब्धि वीर्यलब्धि ५, वालवीर्य ६, परिडत वीर्य ७, बाल पण्डित वीर्य, : उपरोक्ष चार भावों के अस्सी बोला में से कितनेक पौल जी. प में हमेशां पावेहीमें, लक्षण गुण पाय को भाव जीव कहते हैं, तात्पर्य यह है कि गुणों की समुदाय. तो हव्यजीव सास्वता है, और गुणों में परिवर्तना, वो भाव जीव, पर्याय ते अंसास्वता है। उदय निप्पन, उपसम निष्पन्न, क्षायक निष्पन्न, क्षयोपसम निष्पन न, और परिणामिक निष्पन्न, यह पांच भावों में से चारतो, फालान्तर में पलट जाते हैं, और शायक निष्पन्न भाव हुए बाद नहीं पलटता है, सो बुद्धिमानजन इस को यथा तथ्य समझलेंगे ॥ दाल तेहीज ॥ द्रव्यतो सास्वतो छै ताहि, ते तो तीन्हीं कालरै - - मांहि । ते तो विलय कदे नहीं होय, दृव्यतो ४.
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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